हिन्दी पखवाड़े के अंतर्गत अखिल भारतीय संस्कृत परिषद्, लखनऊ में कार्यक्रम
देववाणी संस्कृत एवं जनवाणी हिन्दी विषयक विशिष्ट व्याख्यान का हुआ आयोजन
लखनऊ। हिन्दी पखवाड़े के अंतर्गत अखिल भारतीय संस्कृत परिषद्, लखनऊ में विशिष्ट व्याख्यान आयोजित हुआ। शनिवार को आयोजित व्याख्यान ‘देववाणी संस्कृत एवं जनवाणी हिन्दी’ विषय पर रहा। लखनऊ विश्वविद्यालय के संस्कृत की आचार्या प्रो. अलका पांडेय ने मुख्य वक्ता के रूप मे देववाणी संस्कृत को समस्त भाषाओं की जननी बताया। उन्होंने सभी भाषाओं की जननी के रूप में वैदिक काल से लेकर अत्याधुनिक युग तक सर्वाधिक प्रासंगिक व महत्त्वपूर्ण सिद्ध किया।
उन्होंने ट्रैक्टर, लेवलर जैसे अत्याधुनिक संयंत्रों के लिए इस्तेमाल होने वाले संस्कृत शब्दों के प्रयोग की वैज्ञानिकता को प्रमाणित किया। हिन्दी के पानी शब्द के लिए वारि नीर, तोय, रस आदि विविध शब्दों के साथ शरीर के इस्तेमाल होने वाले शरीर, देह आदि शब्दों के अलग–अलग रहस्यों पर भी प्रकाश डाला। जिसका निष्कर्ष है कि शब्द केवल अभिव्यक्ति का मात्र का माध्यम न होकर व्यक्ति के अनुभव, व्यवहार, संस्कार व चेतना को प्रतिबिंबित करते हैं।
आयोजन मे परिषद् के मंत्री प्रो. प्रयाग नारायण मिश्र ने हिन्दी की विविध बोलियों में प्रयोग होने वाले लोक भाषा के बप्पा, साला जैसे शब्दों के मूल में निहित संस्कृति व संस्कृत के रहस्यों पर प्रकाश डालते हुए बताया कि विवाह संस्कार मे प्रचलित लाजा होम के कारण निष्पन्न स्याला शब्द को साला कहते हैं । साला को उच्चारणलाघव के कारण स्याला से निर्मित बताया, क्योंकि आज भी लाजा होम पत्नी का भाई अर्थात् स्याला ही करता है। बप्पा भी कदाचित् संस्कृत के वप्ता का अपभ्रंश प्रतीत होता है।
संस्कृत के शब्दों से ही विकसित हिन्दी के अधिकांश शब्द अपने अन्दर अनेक रीति रिवाजों, परम्पराओं व संस्कारों के चिह्न छिपाये रहते हैं। मुख्य अतिथि के रूप में कौशाम्बी के पूर्व सेवानिवृत्त सीडीओ डॉ. रवि किशोर त्रिवेदी ने उपनिषद् के अपाणि पादौ यवनो गृहीता आदि का हिन्दी में विनु पद चल इ सुन इ विनु काना आदि के रूप मे वर्णन करके पारिवारिक शिष्टाचार व मर्यादाओं को समाज सुधार के लिए ग्राह्य बताया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ की पूर्व सङ्कायाध्यक्ष प्रो. उमारानी त्रिपाठी ने बताया कि संस्कृत के बिना स्तरीय हिन्दी का प्रयोग दुष्कर है। हिन्दी जिस भारतवर्ष की राष्ट्र भाषा है, उस भारत वर्ष की प्रतिष्ठा संस्कृत व संस्कृति के कारण है।
अतः मातृभाषा हिन्दी के साथ उसकी भी मां संस्कृत का समाराधन करना चाहिए, इसी से सम्पूर्ण समाज व लोक का उत्थान सम्भव है। कार्यक्रम संचालन परिषद् के मन्त्री डॉ. अनिल कुमार पोरवाल व कार्यक्रम संयोजक डॉ. पत्रिका जैन ने स्वागत किया। परिषद् के अपर मन्त्री डॉ अभिमन्यु सिंह ने आभार जताया। आयोजन में डॉ. रेखा शुक्ला, डॉ. गौरवसिंह, डॉ. शोभाराम दुबे, डॉ. शालिनी साहनी, डॉ. सुनयना, डॉ. नीलम पाण्डेय, डि.अंशु शुक्ला सहित, ज्योतिष व संस्कृत विभाग,लविवि के शोध छात्रों समेत अनेक श्रोता मौजूद रहे।