भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की कहानी के परिप्रेक्ष्य में ’पेरिस कम्यून’ को याद किया

Anoop

August 24, 2025

इप्टा कार्यालय में हुआ पुस्तक ‘पेरिस कम्यून’ का लोकर्पण

कार्यक्रम में अनेक बुद्धिजीवी और छात्र, छात्राएं मौजूद थे

लखनऊ। क्रांतियों के जनक वह कारक होते हैं, जो हमें सामान्य रूप में ही नजर आ जाते हैं। लेकिन हम अक्सर उन्हें देर से पहचान पाते हैं। यह बातें प्रख्यात चिंतक प्रो रमेश दीक्षित ने कहीं। वह उन्होंने कवि, स्तम्भकार भगवान स्वरूप कटियार की पुस्तक ‘पेरिस कम्यून’ का लोकार्पण के अवसर पर बोल रहे थे। प्रो रमेश दीक्षित ने यह विचार भारत के स्वतंत्रता संग्राम की कहानी के परिप्रेक्ष्य में ’पेरिस कम्यून’ को याद किया। कार्यक्रम इंडियन पीपुल्स थिएटर एसोसिएशन ‘इप्टा’ लखनऊ और आस फाउंडेशन की ओर से इप्टा कार्यालय कैसरबाग के बलराज साहनी सभागार में हुआ। कार्यक्रम में अनेक लेखक व साहित्यप्रेमी मौजूद थे।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ लेखिका व पत्रकार वंदना मिश्रा ने कहा कि यह किताब इस समय बेहद प्रभावी हो सकती है, क्योंकि इस दौर में फ्रांस क्रांति और पेरिस कम्यून को और अधिक प्रासांगिक होकर समझा जा सकता है। वरिष्ठ आलोचक वीरेंद्र यादव ने पेरिस कम्यून को आज के संदर्भ में रेखांकित करते हुए कहा कि शोषित और वंचित वर्ग की मुनासिब नुमाइंदगी और उस समाज के प्रतिनिधित्व का बोध फ्रांस की क्रांति और पेरिस कम्यून के बहाने हमारी मनः स्थिति में आया।

वरिष्ठ लेखक एवं अनुवादक शकील सिद्दीक़ी ने लखनऊ में स्वतंत्रता संग्राम के दिनों को याद करते हुए बताया कि कैसे चिनहट, उजरियांव और मल्हौर में अंग्रेजों को आम आदमियों की भीड़ ने बिना हथियारों के ही रोक लिया था। बाद में उन लोगों को अंग्रेजों ने गोली से नहीं, बल्कि उनकी गर्दनों को काटा, उन्हें जिबह किया गया। बिल्कुल पेरिस कम्यून की तरह भारतीयों ने जंग लड़ी।

इप्टा के राकेश वेदा ने कहा कि पेरिस कम्यून और भारत के स्वतंत्रता संग्राम की स्मृतियों को ऐसे ही याद किया जाना जरूरी है। भगवान स्वरूप कटियार ने इस विषय पर किताब लिखकर इसे जिंदा कर दिया है। लेखक अशोक चंद्रा ने कहा कि भगवान स्वरूप कटियार ने इस विषय पर यह किताब लिख कर एक नए अध्याय का रास्ता खोल दिया है।

प्रो सूरज बहादुर थापा ने कहा कि इस किताब की महत्ता इस बात में निहित है कि आज जब की सत्ता पर विराजमान विचार धारा भारत की साझी विरासत और प्रगतिशील लोकतांत्रिक मूल्यों को मिटा कर एक कट्टर साम्प्रदायिक इतिहास दृष्टि जो लोक तंत्र और मानव विरोधी है। ऐसे में लोकतंत्र और समाजवादी मूल्यों को प्रेरित करने वाली ऐतिहासिक घटनाओं को विषय बनाकर पुस्तक लिखना लोकतंत्र और समाजवाद को बचाने की चुनौती पूर्ण कृत्य है।

किताब के विमोचन के बाद पेरिस कम्यून पर संदीप राउज़ी का मोनो पॉडकास्ट को सुनवाया गया। संचालन सुहेल वहीद ने किया और शहज़ाद रिज़वी आभार जताया। कार्यक्रम में दीपक कबीर, विजय राय, शैलेष पंडित, डॉ आवंतिका सिंह, आसिफ़ रियाज़, ज्ञान चंद्र शुक्ला, अशोक मिश्र, डॉ सुभाष राय, इरा श्रीवास्तव, दयाशंकर राय समेत अनेक बुद्धिजीवी और छात्र, छात्राएं मौजूद थे।

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