वरिष्ठ व्यंग्यकार गोपाल चतुर्वेदी की स्मृति में हरिओम मंदिर लालबाग में हुई सभा
लखनऊ में हुए आयोजन में उनके प्रशंसकों ने दी श्रद्धांजलि, किया नमन
लखनऊ। प्रख्यात व्यंग्यकार गोपाल चतुर्वेदी को शहर के साहित्यप्रेमियों और प्रशंसकों ने भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की। हरिओम मंदिर लालबाग लखनऊ में 28 जुलाई सोमवार को स्मृति सभा का आयोजन हुआ। गोपाल चतुर्वेदी से पहले उनकी पत्नी पूर्व वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी निशा चतुर्वेदी का निधन हो गया था। पत्नी के निधन के महज छह दिन बाद 83 वर्षीय गाेपाल चतुर्वेदी जी का 25 जुलाई को निधन हो गया था। सभा में वरिष्ठ साहित्यकार डॉ उदय प्रताप सिंह, वरिष्ठ व्यंग्यकार सूर्यकुमार पांडेय, राजेश अरोरा शलभ, वरिष्ठ गायिका सुनीता झिंगरन, दामाद मनसिजे मिश्र, पूर्व वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी अरविंद चतुर्वेदी, प्रो उषा सिन्हा, वरिष्ठ लेखिका अलका प्रमोद, उप्र हिंदी संस्थान की प्रधान संपादक डॉ अमिता दुबे, समाजसेवी मधु चतुर्वेदी, देवकी नंदन शांत, वरिष्ठ समाजसेवी प्रमोद चौधरी, प्रकाशक व लेखक नवीन शुक्ल समेत अनके प्रशंसक मौजूद रहे।
स्मृतिशेष गोपाल चतुर्वेदी को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार राजनेता डॉ उदय प्रताप सिंह ने कहा कि गोपाल जी लखनऊ के सामाजिक जीवन की शान थे। उन्हें समर्पित अपनी रचना ‘उस दिन जब तुम चले गए तो, सावन की आंखें भर आईं/ दीवारें हो गईं रुआसी आंगन की आंखें भर आईं, बाद तुम्हारे जाने के मैं बोलो किसे समझाता/ भूले से पड़ गया सामने दर्पण की आंखें भर आईं। सुनीता झिंगरन ने गोपाल जी को समर्पित अपने शास्त्रीय रागों की श्रद्धांजलि अर्पित की। उन्होंने कहा कि गोपाल जी ने अपने आंगन में हर वर्ष होली के रंगों को चटख रखा। उनके घर के आंगन में हर वर्ष हरकारे का फागोत्सव की स्मृतियां हमेशा चटख रहेंगी।

नवीन शुक्ल ने कहा कि हमारी अंतरंग थे, हर तरह की बातें कर लेते थे। हमेशा सहयोग करते रहे। सूर्यकुमार पांडेय ने कहा कि जब गोपाल जी उत्तर प्रदेश भाषा संस्थान के अध्यक्ष रहे। अर्चना दीक्षित ने कहा कि गोपाल चतुर्वेदी जी ने विभिन्न भाषाओं को लेकर अद्भुत काम किए। अनुवाद, प्रकाशन, गोष्ठी, राष्ट्रीय सेमिनार के अलावा भाषा संस्थान की पत्रिका ‘प्रभाष’ का प्रकाशन शुरु किया। भारतीय भाषाओं पर राष्ट्रीय सेमिनार कराए। महत्वपूर्ण कार्यक्रमों का सिलासिला लगा रहा। नई दिल्ली में बाल साहित्य पर राष्ट्रीय संगोष्ठी भाषा संस्थान की ओर से आयोजित की। लखनऊ में गोपाल जी के आने के बाद संगोष्ठियों गोष्ठियों का नया सिलसिला शुरु किया। डॉ अमिता दुबे ने कहा कि गोपाल जी का कृतित्व-व्यक्तित्व हमारे जैसी पीढ़ी के लिए अनुभव की परकाष्ठा है। हमारे बाद की पीढ़ी के लिए उनका लेखन महत्वपूर्ण है। सहज