लखनऊ पुस्तक मेले में आए प्रकाशनों के प्रतिनिधियों ने साझा किए अपने अनुभव
ऑनलाइन, ऑफलाइन बाजार, पाठकों की पसंद पर प्रकाशन प्रतिनिधियों की राय
लखनऊ। पुस्तक और पाठकों के बीच की डोर साहित्य के क्षेत्र में बेहद संवेदनशील मानी जाती है। इसी डोर में गूंथे लेखक प्रकाशक और विक्रेता की कड़ी में एक किरदार काफी अहम होता है। जिसकी भूमिका हमेशा बेहद खास तो बनी रहती है। लेकिन इसके योगदान को हम शायद ही देख पाते हों। साहित्य क्षेत्र की अनेक जानकारी इनकी उंगलियों पर हैं। कोई अटके-भटके तो चंद जानकारी पलभर में हाजिर है, जनाब। सिर्फ प्रकाशक, विक्रेता, लेखक ही नहीं। बल्कि लेखकों की आने वाली पुस्तक, छपकर आई नई पुस्तक की टोह मिल जाती है। जिंदगी की जद्दोजहद के बीच पुस्तक बाजार में पार्श्व के यह किरदार खास बन जाते हैं। जिनकी जरुरत शायद ही कभी ओझल हो।
प्रतिष्ठानों से इतर पुस्तक मेलों में इनकी मौजूदगी रंगत घोलती है। तो मेलों के अलावा सोशल साइट्स पर इनकी दस्तक पाठकों का बड़ा सहारा बनी है। मेलों में बुक स्टॉलों की रैक पर सजीं किताबों के बीच पाठकों, मीडिया प्रतिनिधियों की जिज्ञासाओं को शांत करते दिखाई देते हैं। कौन से लेखक की नई पुस्तक आई, आने वाली है या प्रकाशनाधीन है। लेकिन किताबों की खुशबू में घुला यह किरदार दूर होते ही कहीं गुम हो जाता है। किताबों के बाजार से इतर पार्श्व के यह योद्धा पाठकों और प्रकाशकों के बीच कड़ी बने हैं। लेकिन पार्श्व की इस महत्वपूर्ण भूमिका पर शायद ही कभी चर्चा होती हो। लेकिन कालजयी साहित्यकारों की कृतियों पर इनकी बारीक नजर साहित्यिक समझ को बखूबी बयां करती है।

लखनऊ अपने मिजाज का शहर है
राजपाल प्रकाशन के प्रतिनिधि अशोक शुक्ल जी बताते हैं मैं पिछले चार दशक से इस संसार से जुड़ा हूं। शायद ही कोई पुस्तक मेला, पुस्तक उत्सव में मैं शामिल न रहा होऊं। एक लंबा और यादगार सफर रहा। अशोक जी मूलत: प्रतापगढ़ के हैं। उन्होंने बताया कि ग्रेजुशन के बाद वर्ष 1989 में दिल्ली में वैराइटी बुक्स में बतौर डिस्ट्रीब्यूटर्स काम शुरु किया। फिर सुबोध पॉकेट बुक्स से जुड़ा, उसके बाद वर्ष 2009 में राजपाल प्रकाशन समूह में काम शुरु किया, जो जारी है। पुस्तकों के बंडल बांधने से लेकर मार्केटिंग के हर पहलू पर नजर रखी, सीखा-समझा और किया। वर्ष 2010 से लखनऊ आ रहा हूं। लखनऊ अपने मिजाज का शहर है। यहां के पाठक साहित्य में गहरी रूचि रखते हैं। उपान्यासकारों की त्रयी भगवती चरण वर्मा, अमृतलाल नागर, यशपाल जी समेत लेखकों की लंबी परंपरा है। अशोक जी की दो सौ से ऊपर पुस्तकों की निजी लाइब्रेरी है। अमृत लाल नागर की मानस का हंस, भगवती बाबू की चित्रलेखा समेत अनेक कृतियों को कालजयी मानते हैं। वे ऑनलाइन और ऑफलाइन पाठकों के अलग-अलग बाजार में उत्साह खूब देखते हैं।

हर वर्ष बीस प्रतिशत किताबों की बिक्री में बढ़ोत्तरी
देश के अग्रणी प्रकाशनों में राजकमल प्रकाशन समूह के युवा प्रतिनिधि रामसिंह ने कहा कि मुझे 25 वर्ष हो गए इस समूह से जुड़े। आनंद आता है, एक अग्रणी समूह में काम करके। हिंदी से स्नातक कर इस समूह से जुड़ा अभी सफर जारी है। प्रेमचंद, इस्मत चुगताई, कुर्तुल एन हैदर समेत अनेक प्रगतिशील साहित्यकारों का लेखन खासा प्रभावित करता रहा। रामसिंह बताते हैं कि हर वर्ष बीस प्रतिशत किताबों की बिक्री में बढ़ोत्तरी दिखाई देती है। पुस्तकें नहीं बिकतीं, कोई पढ़ता नहीं। यह बेमानी बातें हैं। लखनऊ भी इस मामले में अग्रणी है।

पाठक पसंदीदा लेखक को और हम ज्यादातर साहित्यकार याद रखते हैं
प्रभात प्रकाशन के बुक स्टॉल पर मौजूद वरिष्ठ प्रतिनिधि उत्तराखंड के सुरेंद्र सिंह दिल्ली में रहते हैं। ज्यादातर पुस्तक मेलों में पहुंचते हैं। वह बताते हैं कि 26 वर्ष पहले प्रभात प्रकाशन समूह से जुड़ा, बुक सेलिंग स्टार्ट की। पाठक अपने पसंदीदा लेखक के बारे में जानकारी रखता है। लेकिन हमें ज्यादातर साहित्यकार याद रहते हैं। बुक सेलर कहते हैं कि काम नहीं, लेकिन प्रकाशकों का नुकसान नहीं है। हां डिस्ट्रीब्यूटर्स, रिटेलर का काम ज्यादा चुनौतीपूर्ण है। ऑनलाइन ने पुस्तक बिक्री को प्रभावित किया। लेकिन ऑफ लाइन बाजार की डोर भी मजबूत है। सुरेंद्र जी एपीजे अब्दुल कलाम की पुस्तकों को पढ़ने की सबको सलाह देते हैं। सुरेंद्र कहते हैं कि मेरे पास कलाम साहब की लगभग सभी पुस्तकें हैं। डॉ कलाम जी ने अपने जीवन से यह सिद्ध किया कि मेहनत और दृढ़ इच्छाशक्ति से सभी चुनौतियां छोटी हो जाती हैं। दुनिया में करोड़ों युवाओं के प्रेरणास्रोत डॉ कलाम जी अपने संघर्ष, सौम्यता, सरलता और संवेदनशीलता के प्रतीक बने।

सोशल मीडिया ने बढ़ाया पुस्तकों के प्रति आकर्षण
वाणी प्रकाशन समूह के युवा प्रतिनिधि अतुल महेश्वरी 22 वर्षों से पुस्तक संसार से जुड़े। बताते हैं कि एक अरसा कपड़ों के बिजनेस में जुड़ा रहा। वह कहते हैं कि सोशल मीडिया के प्रभाव से लोग पुस्तकों की ओर ज्यादा आकर्षित हो रहे हैं। खासकर युवा पाठकों की भीड़ है। पुस्तकों के इस बाजार में ऑन लाइन-ऑफ लाइन बिक्री का मूल्यांकन अपना-अपना नजरिया है। मैं कहूंगा ऑन लाइन सपोर्टिव है, बाजार समृद्ध हुआ है।