अस्वस्थ होने के चलते लखनऊ के सहारा हॉस्पिटल में भर्ती थे
अंतिम संस्कार गोमती नगर के भैंसाकुंड शमशान घाट पर हुआ
लखनऊ। देश के जानेमाने व्यंग्यकार गोपाल चतुर्वेदी का 24 जुलाई को इलाज के दौरान निधन हो गया। लगभग 86 वर्षीय गोपाल जी को अस्वस्थ होने के चलते लखनऊ के मैक्स हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया था। 18 जुलाई को उनकी पत्नी पूर्व वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी 83 वर्षीय निशा चतुर्वेदी का निधन हो गया था। उनके निधन के बाद गोपाल जी गहरे सदमे में थे। उनका अंतिम संस्कार गोमती नगर के भैंसाकुंड शमशान घाट पर हुआ। उनका अंतिम संस्कार उनके दामाद मानसिज मिश्र ने किया।
शुक्रवार को उनके निधन का समाचार मिलते ही साहित्य जगत में शोक की लहर दौड़ गई। लखनऊ राणा प्रताप मार्ग स्थित उनके आवास ‘उत्सव’ पर प्रशंसकों ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की। उनके अंतिम संस्कार के मौके पर वरिष्ठ पत्रकार सुधीर मिश्र, वरिष्ठ साहित्यकार और राजनीतिज्ञ डॉ उदय प्रताप सिंह, उप्र भाषा संस्थान से अर्चना जी, कवि सर्वेश अस्थाना, मुकुल अस्थाना, रचनाकार व प्रकाशक नवीन शुक्ल, देवराज अरोड़ा, व्यंग्यकार अलंकार रस्तोगी, पंकज प्रसून, वरिष्ठ रंगकर्मी अंशु टंडन समेत अनेक प्रशंसकों की भीड़ रही।
- भोपाल और इलाहाबाद में किया अध्ययन
गोपाल चतुर्वेदी का जन्म गनेशगंज मोहल्ले में शिक्षाविद् सालिग्राम चतुर्वेदी के घर 15 अगस्त 1942 को हुआ। शिक्षाविद सालिग्राम लखनऊ विश्वविद्यालय के शिक्षा व मनोविज्ञान विभाग में प्रध्यापक थे। यहीं से चयनित होकर वे मध्य प्रदेश में टीचर ट्रेनिंग कालेज के प्राचार्य बने। इसलिए गोपाल जी की शुरुआती शिक्षा देवास के सिंधिया कालेज में हुई। पिता के भोपाल में शिक्षा निदेशक बनने के बाद उन्होंने अपने बेटे गोपाल को हमीदिया कालेज में दाखिला दिला दिया। इसके बाद गोपाल जी परास्नातक की शिक्षा के लिए इलाहाबाद यूनिवर्सिटी पढ़ने गये। यहीं उन्होंने प्रशासनिक प्रतियोगिताओं की तैयारी की। पहले भारतीय पुलिस सेवा में चयनित हुए।
मसूरी में फाउंडेशन कोर्स के दौरान अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं में शामिल हुए। जहां चयनित हो वह इंडियन रेलवे एकाउंट सर्विस में प्रथम श्रेणी के अधिकारी बने। उस समय लेखा सेवाओं का आकर्षण था। क्योंकि इन सेवाओं में जनसंपर्क कम था। पदोन्नति की गुंजाइश भी थी। गोपाल जी प्रारंभ से सृजन के साथ पठन-पाठन में सक्रिय रहे। आकाशवाणी इलाहाबाद में कवितापाठ के लिए उन्हें दस रूपए मिलते। सरिता पत्रिका से पंद्रह रूपए मिलते थे। कुल 24 रुपए से उनके इलाहाबाद कॉफी हाउस का खर्च निकल आता था। बाकी हॉस्टल और फीस पिताजी भेजते थे। लेखन का क्रम उनका हमीदिया कालेज के समय से शुरू हुआ। जो आखिर तक चलता रहा।
- इलाहाबाद में मिली साहित्यिक गति
यहां स्वतंत्रता सेनानी जयप्रकाश नारायण, डॉ राम मनोहर लोहिया जी के संपर्क में आए। इलाहाबाद के साहित्यजगत में रम गये। यहीं से उनके रचनाकर्म की शुरुआत हुई। प्रतियोगी परीक्षाओं में सफलता के बाद पहली पोस्टिंग एएसपी फैजाबाद नियुक्त हुए। लेकिन मानवीय संवेदनाओं के विपरीत मानते हुए और रचनाकर्म के लिए समय न मिलने की वजह से उन्होंने इस पेशे को उन्होंने छोड़ दिया। गोपाल जी बताते थे कि वर्ष 1960-61 में इलाहाबाद आया।
- पं. श्रीनारायण चतुर्वेदी विद्यानिवास मिश्र से मिली साहित्यिक प्रेरणा
गोपाल चतुर्वेदी बताते थे कि मुझे लिखने की प्रेरणा साहित्यकार पंडित श्रीनारायण चतुर्वेदी से मिली। उसके बाद उसके परिमार्जन और व्यंग्य लेखन की समझ वो साहित्यकार विद्यानिवास मिश्र से मिली। उन्होंने मेरे पहले संग्रह की भूमिका में लिखा था इसके लेखन में बतरस है। यही वजह मेरे लेखन में सुख के पल ज्यादा रहे। गोपाल जी कहते थे कि कविता लिखना सुरक्षित भले ही हो, लेकिन समीचीन नहीं है। तब से मैं व्यंग्य लिख रहा हूं। पहला व्यंग्य ‘अफसर की मौत’ धर्मयुग पत्रिका में प्रकाशित हुआ था।
- पत्र-पत्रिकाओं में लेखन के लिए चुनौतियों का सामना करना पड़ा
विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में उन्हें व्यंग्य लेखन के लिए चुनौतियों का सामना करना पड़ा। उनके लिखे लेख व स्तंभ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए। सिविल एविएशन एंड टूरिज्म में उपसचिव थे। फाइल पढि-पढ़ि, कुछ तो है कालम का चार वर्षो तक लगातार प्रकाशन हुआ। उनके लेखन में सरकारी तंत्र के मानवीय पक्षों का उजागार किया जाना था। गोपाल चतुर्वेदी के उपान्यास अफसर की मौत को हिंदी अकादमी से सम्मान मिला। वर्ष 1986 उनकी कविता “जय देश भारत भारती” को भारत के पहले सांस्कृतिक उत्सव अपना उत्सव के थीम गीत के रूप में हजारों प्रविष्टियों में से चुना गया था। कविता पंडित रविशंकर ने संगीतबद्ध की गई थी और गंधर्व महाविद्यालय के छात्रों ने गाया था। इसे पूर्व प्रधानमंत्री ने युवा खेल महोत्सव के अवसर पर जारी किया था। लालकिले परिसर में आयोजित इस महोत्सव में मशहूर चित्रकार एमएफ हुसैन ने गीत पर आधारित पेंटिंग बनाई थी।
मिले कई सम्मान-पुरस्कार
वे गद्य और पद्य दोनों विधाओं में लेखन करते थे। उनके कविता संग्रह कुछ तो हो और धूप की तलाश प्रकाशित हुए। व्यंग्य संग्रह में प्रमुख रूप से धाँधलेश्वर, अफ़सर की मौत, दुम की वापसी, राम झरोखे बैठ के, फ़ाइल पढ़ी, आदमी और गिद्ध, कुरसीपुर का कबीर, फार्म हाउस के लोग और सत्तापुर के नकटे काफी लोकप्रियता रहे। उन्हें 2001 में हिंदी भवन का लोकप्रिय व्यंग्य श्री सम्मान दिया गया। 2015 में उत्तर प्रदेश सरकार से उन्हें यश भारती सम्मान मिला। केन्द्रीय हिंदी संस्थान से सुब्रह्मण्यम भारती पुरस्कार भी मिल चुका था।