बिजली कर्मियों का लखनऊ में 240 वें दिन निजीकरण का जबरदस्त विरोध प्रदर्शन
प्रदेश के बिजली कर्मचारियों के आंदोलन के आज 8 माह पूरे हो गए हैं, प्रदेशभर में विरोध
लखनऊ। विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति, उत्तर प्रदेश ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से अपील की है कि वे प्रभावी हस्तक्षेप करने करें। जिससे देश के अन्य हिस्सों में विफल हो चुके निजीकरण के प्रयोग को उत्तर प्रदेश की गरीब जनता पर न थोपा जाय। बिजली कर्मचारियों ने शुक्रवार को लखनऊ समेत प्रदेशभर में लगातार 240 वें दिन निजीकरण के विरोध में विरोध प्रदर्शन जारी रखा।
विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति, उत्तर प्रदेश के पदाधिकारियों ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से अपील करते हुए कहा है कि उनके मार्गदर्शन में बिजली कर्मचारियों ने रिकॉर्ड विद्युत आपूर्ति की है और लाइन हानियां में कमी कर उसे राष्ट्रीय मानक के नीचे कर दिया है। महाकुंभ के दौरान बिजली कर्मियों ने अथक परिश्रम कर 65 दिनों तक चले महाकुंभ में पल मात्र के लिए भी विद्युत आपूर्ति में व्यवधान नहीं आने दिया। आंदोलन रत रहते हुए भी बिजली कर्मियों ने भीषण गर्मी के दौरान लगातार बेहतर विद्युत आपूर्ति बनाए रखने का प्रयास किया।
संघर्ष समिति ने कहा कि बिजली के क्षेत्र में निजीकरण का प्रयोग एक विफल प्रयोग है। प्रांत के स्तर पर सबसे पहले वर्ष 1999 में उड़ीसा में विद्युत वितरण का निजीकरण किया गया था। निजीकरण का यह प्रयोग उड़ीसा के सबसे अधिक औद्योगिक और वाणिज्यिक क्षेत्र में एक वर्ष में ही विफल हो गया। अमेरिका की एईएस कंपनी एक वर्ष बाद ही काम छोड़कर भाग गई और उसने महा चक्रवात के दौरान टूटे बिजली के ढांचे का पुनर्निर्माण करने से इनकार कर दिया। रिलायंस पावर अन्य तीन विद्युत वितरण निगमों में काम करता रहा। फरवरी 2015 में उड़ीसा के विद्युत नियामक आयोग ने बेहद खराब परफॉर्मेंस के चलते रिलायंस पावर के भी तीनों लाइसेंस रद्द कर दिये। उड़ीसा में यह दूसरी विफलता थी।
कोरोना के दौरान जून 2020 में उड़ीसा के चारों विद्युत वितरण निगमों का लाइसेंस टाटा पावर को दे दिया गया। 15 जुलाई को उड़ीसा के विद्युत नियामक आयोग ने स्वतः संज्ञान लेते हुए बेहद खराब परफॉर्मेंस के कारण टाटा की चारों कंपनियों को नोटिस जारी किया है और उनके परफॉर्मेंस पर जनसुनवाई का आदेश जारी कर दिया है ।उड़ीसा में यह निजीकरण की तीसरी विफलता है। उड़ीसा में भारतीय जनता पार्टी टाटा पावर के विरोध में लगातार आंदोलन कर रही है। संघर्ष समिति ने कहा कि पड़ोसी प्रांत बिहार में गया, भागलपुर और समस्तीपुर में अर्बन डिस्ट्रीब्यूशन फ्रेंचाइजी के नाम पर निजीकरण का प्रयोग किया गया था। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इसके पूरी तरह असफल रहने के चलते इसे एक साल बाद ही रद्द कर दिया। महाराष्ट्र में औरंगाबाद, जलगांव, नागपुर और झारखंड में रांची और जमशेदपुर में निजीकरण के विफल प्रयोग निरस्त किए जा चुके है।
संघर्ष समिति ने कहा कि उत्तर प्रदेश में ग्रेटर नोएडा और आगरा में निजीकरण का प्रयोग असफल रहा है। ग्रेटर नोएडा में आए दिन किसानों और घरेलू उपभोक्ताओं की शिकायतें सामने आ रही है। ग्रेटर नोएडा में निजी कंपनी का लाइसेंस निरस्त कराने हेतु स्वयं उत्तर प्रदेश सरकार माननीय सर्वोच्च न्यायालय में मुकदमा लड़ रही है। आगरा में टोरेंट पावर कंपनी अर्बन डिस्ट्रीब्यूशन फ्रेंचाइजी के करार का खुलेआम उल्लंघन कर रही है। संघर्ष समिति ने कहा कि निजी कंपनी मुनाफे के लिए काम करती है और पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम एवं दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम के अंतर्गत आने वाले 42 जनपदों में बेहद गरीब जनता रहती है। अतः प्रदेश के और आम जनता के व्यापक हित में निजीकरण का विफल प्रयोग उत्तर प्रदेश में न लागू किया जाए और तत्काल इसे निरस्त किया जाए। उत्तर प्रदेश के बिजली कर्मचारियों के आंदोलन के आज 8 माह पूरे हो गए हैं। आंदोलन के 240 वें दिन आज प्रदेश के समस्त जनपदों और परियोजनाओं पर बिजली कर्मियों ने विरोध सभा कर निजीकरण का निर्णय निरस्त करने की मांग की।