तुलसीदास जी का साहित्य लोकतत्व से परिपूर्ण हैं: डॉ हरिशंकर मिश्र

Anoop

July 31, 2025

उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान में हुआ साहित्य विभूतियों की स्मृति में समारोह

तुलसीदास, परशुराम चतुर्वेदी, प्रेमचन्द, चंद्रधर शर्मा गुलेरी की स्मृति में हुआ समारोह

                              लखनऊ। उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान की ओर से गोस्वामी तुलसीदास, आचार्य परशुराम चतुर्वेदी, मुंशी प्रेमचन्द एवं कथा सम्राट चंद्रधर शर्मा गुलेरी स्मृति में समारोह हुआ। एक दिवसीय संगोष्ठी हिन्दी भवन के निराला सभागार लखनऊ में हुई। वाणी वंदना गीता शुक्ला ने की। अतिथि डॉ हरिशंकर मिश्र, असित चतुर्वेदी, नरेन्द्र भूषण एवं डॉ अलका पाण्डेय व प्रधान सम्पादक, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान डॉ अमिता दुबे मौजूद रहीं।

               डॉ हरिशंकर मिश्र ने कहा गोस्वामी तुलसीदास एक प्रेरणा पुरुष के रूप में हमारे सम्मुख हैं। तुलसीदास जी का जीवन काफी संघर्षमय था। तुलसीदास जी का साहित्य लोक तत्व से परिपूर्ण हैं। वे लोक सेवा भावना से ओत-प्रोत थे। उन्होंने अपनी रामकथा को गंगा से जोड़ने का प्रयास किया। साहित्य ऐसा होना चाहिए जो गंगा की भांति सभी का हितकारी हो।

असित चतुर्वेदी ने कहा- सरस्वती के उपासक कभी स्वर्गीय नही होते हैं। सरस्वती के साधना में लगे हुए लोग कभी स्वर्गीय नहीं होते है। आचार्य परशुराम चतुर्वेदी जी पेशे से वकील थे। वे वकालत से अधिक साहित्य साधनारत थे। आचार्य परशुराम चतुर्वेदी जी की उनकी पुस्तक ’उत्तरी भारत की संत परम्परा’ काफी चर्चित है।

 नरेन्द्र भूषण ने प्रेमचन्द के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर चर्चा करते हुए कहा-कुछ लोग ऐसे होते हैं, जहाँ जन्म लेते हैं वह स्थान धन्य हो जाता है। प्रेमचन्द का साहित्य आज भी प्रासंगिक है। प्रेमचन्द जी अपने लेखन की शुरुआत नबाब राय के नाम से की। प्रेमचन्द का साहित्य देशभक्ति की भावना से परिपूर्ण है। प्रेमचन्द के साहित्य में सामाजिक कुरीतियों का व्यापक विरोध मिलता है।

डॉ अलका पाण्डेय ने कहा कि चन्द्रधर शर्मा गुलेरी जी का साहित्य फलक बहुत बड़ा है। गुलेरी जी ने विभिन्न साहित्यिक पत्रिकाओं से जुड़कर साहित्य सेवा की है। गुलेरी जी ने जो लिखा काफी महत्वपूर्ण लिखा है। चन्द्रधर शर्मा गुलेरी ’उसने कहा था’ लिखकर साहित्यिक जगत में अमर हो गये। इस अवसर पर तुलसी के पदों रामचन्द्र कृपालु भजमन, गाइये गणपति जग वंदन, ठुमक चलत राम चन्द्र, मो सो कौन दीन तो सौ कौन दयाल की संगीतमय प्रस्तुति संगीत कला संस्थान की डॉ पूनम श्रीवास्तव ने की। तबले पर डॉ राजीव शुक्ल, हारमोनियम पर चन्द्रेश पाण्डे एवं बांसुरी पर दीपेन्द्र कुमार ने संगत की।

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