‘आजाद लेखक कवि सभा’ के संस्थापक रचनाकारों की स्मृति में हुआ समारोह
स्मृतिशेष गुरुमुखी रचनाकारों के परिजनों ने कवितापाठ कर किया प्रभावित
लखनऊ। शहर की प्रख्यात साहित्यिक संस्था ‘आजाद लेखक कवि सभा’ उत्तर प्रदेश लखनऊ के संस्थापकों का स्मृति समारोह मनाया गया। समारोह ‘आजाद लेखक कवि सभा’ के वर्तमान अध्यक्ष नरेंद्र सिंह मोंगा की अध्यक्षता में रविवार को श्री गुरु तेग बहादुर भवन सभागार चंदर नगर मार्केट आलमबाग में हुआ। इस अवसर पर स्मृतिशेष रचनाकारों की लिखी पुस्तकों की प्रदर्शनी भी लगाई गई।
अध्यक्ष नरेंद्र सिंह मोंगा ने कहा कि लखनऊ में प्रख्यात गुरुमुखी साहित्य की त्रयी कवि स्व. नरेंद्र सिंह ‘गुलशन’, स्व. त्रिलोचन सिंह ‘चन’ और स्व. हरमिंदर सिंह ‘दीवाना’ ने न सिर्फ लखनऊ बल्कि देशभर में अपने मौलिक कृतित्व-व्यक्तित्व के जरिए प्रदेश को गौरव दिलाया। तीनों रचनाकार अपने सहज-विनम्र स्वभाव व साहित्यिक, सामाजिक सरोकारों के लिए हमेशा याद किए जाएंगे।
समारोह में ‘आजाद लेखक कवि सभा’ स्मृतिशेष कवियों के परिजन नरेंद्र सिंह गुलशन की पत्नी हरभजन कौर, बेटी गुरप्रीत कौर, पुत्र जगजोत सिंह बहल व रमनदीप सिंह बहल, पुत्रवधू सतविंदर कौर, चन जी की पत्नी सुरिंदर कौर व बेटी मनप्रीत कौर रोजी, दीवाना जी के सुपुत्र दिलमीत सिंह ‘मंटो’ को कवि सभा के अध्यक्ष नरेंद्र सिंह मोंगा, संयोजक त्रिलोक सिंह बहल ने शॉल ओढ़ाकर व प्रतीक चिन्ह भेंटकर सम्मानित किया।
समारोह में हरपाल सिंह गुलाटी, निर्मल सिंह ने तीनों कवियों के कृतित्व-व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला। स्व. हरमिंदर सिंह ‘दीवाना’ जी के पौत्र हरगुन सिंह और अन्य ने तीनों कवियों की कविताओं का सस्वर कवितापाठ किया। कार्यक्रम का संचालन सरबजीत सिंह बख्शीश ने किया। समारोह में जसविंदर सिंह, वरिष्ठ रचनाकार शिवभजन कमलेश, आलमबाग, चंदर नगर समेत अन्य गुरुद्वारों के वरिष्ठ प्रतिनिधि व शहर के कई साहित्यप्रेमी मौजूद रहे।

आलमबाग गुरुद्वारे के तीन सिख युवा रचनाकारों ने बनाई थी आजाद लेखक कवि सभा
कार्यक्रम संयोजक त्रिलोक सिंह बहल ने कहा कि ‘आजाद लेखक कवि सभा’ की स्थापना इन्हीं तीन युवा रचनाकारों ने चार दशक पहले की थी। अस्सी-नब्बे के दशक में आलमबाग गुरुद्वारे से जुड़े तीन सिख युवा रचनाकारों की इस त्रयी ने देश के कवि दरबारों में गहरी छाप छोड़ी थी। अपने रोजगार, पेशे और सामाजिक दायित्वों को निभाते हुए इन तीन युवा कवियों ने न सिर्फ गुरुमुखी भाषा में बल्कि हिंदी और उर्दू में भी खासी पहचान बनाई। त्रिलोक सिंह ने कहा कि चन जी संस्थापक महासचिव, अध्यक्ष गुलशन जी और दीवाना जी संस्थापक सदस्य थे। सिख गुरुओं की वीरगाथाओं के अलावा विसंगतियों पर अपनी लेखनी से तीखा प्रहार किया। लंबे अरसे तक लखनऊ में अनगिनत रचनाकारों को एकजुट कर सृजनकर्म किया। अहम पुस्तकों का प्रकाशन भी कराया। उनका यह योगदान कभी भुलाया नहीं जा सकता।

