बिजली कर्मचारी अपनी सेवाओं को जारी रखते हुए आठ माह से आंदोलनरत हैं
बिजलीकर्मी बोले निजीकरण के बाद यूपी की गरीब जनता लालटेन युग में चली जाएगी
लखनऊ। विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति, उत्तर प्रदेश ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से ऊर्जा विभाग का दायित्व अपने पास लेने का निवेदन किया। विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति, उत्तर प्रदेश ने कहा है कि संघर्ष समिति के साथ लिखित समझौता कर मुकर जाने वाले ऊर्जा मंत्री अरविंद कुमार शर्मा बिजली कर्मियों का विश्वास पहले ही खो चुके हैं। जबकि बिजली कर्मचारी उपभोक्ताओं की सेवा को बनाए रखते हुए विरोध में आठ माह से आंदोलनरत है।
विद्युत वितरण निगमों में सुधार के लिए केंद्र सरकार की आरडीएसएस योजना के अंतर्गत उत्तर प्रदेश को 44000 करोड रुपए मिला है। निजीकरण का एजेंडा चलाने वाले इस धनराशि को खर्च करके विद्युत वितरण निगमों को कौड़ियों के मोल निजी घरानों को बेचना चाहते हैं। बिजली कर्मियों ने कहा कि निजीकरण के एजेंडे के तहत उप्र के बिजली निगमों को किया जा रहा है बदनाम देश में सर्वाधिक बिजली आपूर्ति का रिकॉर्ड बनाने वाले ऊर्जा निगम उत्तर प्रदेश का गौरव है।
आंदोलनरत कर्मियों ने कहा कि सरकारी विभागों का बिजली राजस्व का बकाया मिल जाए, तो उत्तर प्रदेश के विद्युत वितरण निगम किसी घाटे में नहीं हैं । संघर्ष समिति ने कहा कि 65 दिन चले महाकुंभ के दौरान बिजली कर्मियों ने दिन रात काम किया। बिजली का व्यवधान नहीं आने दिया। लगातार सुधार कर रहे बिजली कर्मियों के प्रयास से 2017 में चल रही 41% लाइन हानियां घटकर अब 15% से नीचे आ गई हैं। बिजली कर्मियों ने भीषण गर्मी के दौरान सीमित संसाधनों के बावजूद सर्वाधिक बिजली आपूर्ति का नया राष्ट्रीय कीर्तिमान बनाया है।
विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति, उत्तर प्रदेश ने प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी से निवेदन किया है कि वे स्वयं ऊर्जा विभाग अपने पास ले लें और निजीकरण का निर्णय निरस्त कर दें, तो बिजली कर्मी उत्साह के साथ उपभोक्ताओं को बेहतर विद्युत आपूर्ति सेवा देने को कृतसंकल्प हैं। बिजली कर्मियों का उन पर पूरा विश्वास है। संघर्ष समिति ने कहा कि निजीकरण के एजेंडे के तहत देश में सर्वाधिक विद्युत आपूर्ति करने वाले उत्तर प्रदेश के ऊर्जा निगमों को बेवजह बदनाम नाम किया जा रहा है। वस्तुत: देश में सर्वाधिक विद्युत आपूर्ति करने वाले ऊर्जा निगम उत्तर प्रदेश का गौरव हैं।
विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति, उत्तर प्रदेश की कोर कमेटी की बैठक में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से ऊर्जा विभाग का दायित्व अपने पास लेने का निवेदन किया। बिजली कर्मी निजीकरण के विरोध में आंदोलनरत हैं, लेकिन बिजली कर्मियों ने अपने आंदोलन के साथ उपभोक्ता सेवा को सदैव सर्वोच्च प्राथमिकता दी है। निजीकरण का एजेंडा लेकर चलने वाले लगातार मिल रही सफलता को विफलता में बदल देने पर तुले हुए हैं। संघर्ष समिति ने कहा जो लोग ऊर्जा विभाग में शीर्ष पदों पर हैं और जो संवैधानिक दायित्वों का निर्वहन करते हुए विद्युत वितरण निगमों को असफल बता रहे हैं, दरअसल इसके पीछे उनका निजीकरण का एजेंडा है, उन्हें अपने पदों से त्यागपत्र दे देना चाहिए। अब ऊर्जा मंत्री और पावर कारपोरेशन के अध्यक्ष के बीच मचे घमासान में आम जनता पिस रही है।
विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति, उत्तर प्रदेश के केंद्रीय पदाधिकारियों ने कहा कि मुख्यमंत्री की प्रदेश की बिजली व्यवस्था के प्रति चिंता उचित है। उत्तर प्रदेश के बिजली कर्मचारी, संविदा कर्मी, जूनियर इंजीनियर और अभियंता मुख्यमंत्री के प्रति पूरा विश्वास रखते हैं। एक वर्ष के अंदर अंदर उत्तर प्रदेश के विद्युत वितरण निगमों की लाइन हानियां राष्ट्रीय मानक से काफी नीचे आ जायेंगी। है। निजीकरण का एजेंडा चलाने वाले आय की धनराशि को खर्च करके विद्युत वितरण निगमों को कौड़ियों के मोल निजी घरानों को बेचना चाहते हैं। संघर्ष समिति ने कहा कि 65 दिन चले महाकुंभ के दौरान बिजली कर्मियों ने दिन रात काम किया। बिजली का व्यवधान नहीं आने दिया। सरकारी विभागों का बिजली राजस्व का बकाया मिल जाए तो उत्तर प्रदेश के विद्युत वितरण निगम किसी घाटे में नहीं हैं ।
संघर्ष समिति ने कहा कि पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम एवं दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगमों की एक लाख करोड रुपए की परिसंपत्तियों को बेचने के लिए रिजर्व प्राइस मात्र 6500 करोड रुपए रखना और 42 जनपदों की सारी जमीन मात्र एक रुपए की लीज पर निजी घरानों को सौंप देना यह ऐसे कदम हैं, जो उत्तर प्रदेश सरकार को बदनाम करने के लिए उठाए जा रहे है। निजीकरण के विरोध में आज अवकाश के दिन बिजली कर्मचारियों ने सभी जिलों और परियोजनाओं पर व्यापक जनसंपर्क किया। आम जनता को यह बताने का प्रयास किया कि निजीकरण के बाद बिजली इतनी महंगी हो जाएगी कि वह किसानों, गरीब उपभोक्ताओं और आम घरेलू उपभोक्ताओं की पहुंच से दूर हो जाएगी। निजीकरण हुआ तो उत्तर प्रदेश की अधिकांश गरीब जनता लालटेन युग में चली जाएगी।