लखनऊ की कैफ़ी आज़मी एकेडमी में शनिवार को दो सत्रों में आयोजित हुआ कार्यक्रम
केपी सिंह मेमोरियल चेरिटेबल ट्रस्ट, जलेस, डॉ. राही मासूम रज़ा साहित्य एकेडमी का आयोजन
लखनऊ। केपी सिंह मेमोरियल ट्रस्ट की ओर से दिया जाने वाला ‘मलखान सिंह सिसौदिया कविता पुरस्कार’ वर्ष 2025 सीमा सिंह को उनके काव्य संग्रह ’कितनी कम जगहें हैं’ के लिए भेंटकर सम्मानित किया गया । लखनऊ की कैफ़ी आज़मी एकेडमी में 11 अक्टूबर को यह कार्यक्रम केपी. सिंह मेमोरियल चेरिटेबल ट्रस्ट, जनवादी लेखक संघ लखनऊ और डॉ. राही मासूम रज़ा साहित्य एकेडमी की ओर से हुआ। दो सत्रों में हुए कार्यक्रम के पहले सत्र में सीमा सिंह को पुरस्कार भेंटकर संग्रह पर गंभीर चर्चा हुई।
शुरुआत प्रो नलिन रंजन सिंह ने अपने स्वागत वक्तव्य से की। उन्होंने अतिथियों और सभागार में मौज़ूद बौद्धिक जनों का स्वागत किया। उन्होंने कहा कि 2024 से पहले मलखान सिंह सिसौदिया पुरस्कार किसी भी लेखिका को नहीं दिया गया। पहली बार किसी लेखिका को यह पुरस्कार दिया जा रहा है। आगे वर्षों में और भी महत्वपूर्ण लेखिकाओं को यह पुरस्कार दिया जाएगा।
सीमा सिंह ने अपने आत्मकथ्य में नमिता सिंह को धन्यवाद दिया। उन्होंने निशांत कौशिक की कविता की पंक्तियां पढ़ते हुए अपने वक्तव्य की शुरुआत की। जब तक कविता लिखी जाती रहेगी तब तक यह सवाल बना रहेगा कि कविता लिखने का क्या प्रयोजन है?कवि अपने समय ,अपनी स्मृतियों के आधार पर कविता लिखता है। कविता के उत्स में करुणा ही छिपी है।कोई यश के लिए कोई धन या कोई अन्य प्रयोजन के लिए कविता लिखता है । जहां तक मेरी बात है मुझे लगा कि लिखना एक सामाजिक ज़िम्मेदारी भी है,प्रतिरोध जिसके लिए निरंतर जगहें कम होती जा रही हैं, कविताएं मुझे अपने नागरिक होने के धर्म के लिए जगाए रखती हैं।कविताएं मेरे लिए मेरे दुखों से उबरने में मदद करते हुए हीलिंग का काम भी करतीं हैं।
सीमा सिंह ने कुछ जोड़ी चप्पलें, मेरे सपने में एक जादूगर आता है, पताकाएं, यह कोई प्रेम कविता नहीं, तुम्हारी उपस्थिति का अर्थ खो गया है उर्फी जावेद, तुम हुस्न परी तुम जानेजहां कविताओं का प्रभावी पाठ किया।
लखनऊ विश्वविद्यालय की प्रो रीता चौधरी ने कहा कि सीमा सिंह की कविताओं को यह सम्मान मिलना ही चाहिए। संग्रह की कई कविताएं मेरे दिल को छू गईं । उन्होंने अपनी बात इस गज़ल के साथ शुरू की। ‘उनको ये शिकायत है कि हम कुछ नहीं कहते, अपनी तो ये आदत है कि हम कुछ नहीं कहते, कुछ कहने से तूफ़ान उठा लेती है ये दुनिया, उस पर ये क़यामत कि हम कुछ नहीं कहते।‘
जब मध्य काल में स्त्रियां लिख रहीं थीं तो फिर स्त्रियों की रचनाएं क्यों नहीं दर्ज हुईं। वीर भारत तलवार कहते हैं की स्त्री विमर्श स्त्री दर्पण पत्रिका से शुरू हुआ, जिसका संपादन स्त्रियों ने शुरू किया। यह प्रसन्नता की बात है कि निर्णायक मंडल के सदस्य नलिन रंजन सिंह बेचैन हुए कि यह सम्मान अभी तक किसी स्त्री को क्यों नहीं मिला, तो ऐसे पुरुष साथियों को हम धन्यवाद देते हैं, जो हमारे कंधे से कंधा मिलाकर चलने के लिए सदैव तत्पर रहते हैं।
उन्होंने संग्रह की कविता कितनी कम जगहें का उदाहरण देते हुए कहा कि यह कविता एक प्रेमी के बारे में है और काव्य शास्त्र में कहते हैं कि “शब्दार्थों सहितौ काव्यम्”। आगे उन्होंने साँवर गोरिया लोकगीत की पंक्तियों के माध्यम से कहा कि स्त्री के चेहरे पर एक लावण्य है ,एक नूर दिखाई देता है। इस कविता में जो मुझे दिखाई दिया वह यह कि कितनी बड़ी बात यह कविता कह देती है कि आज भी भारतीय समाज में स्त्री को प्रेम करने का अधिकार नहीं मिला है।खाप पंचायत किस तरह पहरे देती हैं ।यह खोती जा रही मनुष्यता की कविता है।
उन्होंने “तुम पर निगाह रखी जा रही है’’ कविता का पाठ किया और आगे कहा कि अगर मुझे इस संग्रह का शीर्षक देना होता तो मैं यही नाम रखती कि “तुम पर निगाह रखी जा रही है”। सीमा सिंह की कई कविताओं ने मुझे प्रभावित किया है ।
भोपाल से आई कवयित्री और आलोचक आरती ने कहा कि लैंगिक खाइयाँ पट रही हैं तो इसके लिए के पी सिंह मेमोरियल ट्रस्ट को धन्यवाद दिया जाना चाहिए ।उन्होंने कहा कि मैं 2022 से सीमा की कविताओं को पढ़ती आ रही हूं। मैं जब भी पत्रिका निकालती हूं तो मेरा जो ध्यान सबसे पहले जाता है, वह यह कि इन कविताओं में हमारा समय कितना है। घंटा घर कविता पढ़ते हुए मेरा ध्यान इस कविता पर अटक गया। घंटा घर एक प्रतीक है वैभव का, यह जो दशक है, निद्रा के बीच में बहुत सारी बदसूरतियों के बीच में शाहीन बाग, किसान बाग जैसे आंदोलन ख़ूबसूरती लेकर आते हैं।
हमारे समय में जो भी थोड़े बहुत आंदोलन आते हैं, तो वे हमारे होने को पुनः परिभाषित करते हैं। जब तक आप अनुयायी हैं तब तक आपके लिए जगहें ही जगहें हैं, लेकिन जब आप पीड़ित के पक्ष में खड़े होते हैं तब समय आपको चुप करने के लिए आपके सामने आकर खड़ा हो जाता है।सीमा की कविताओं में भाषाई खेल नहीं है, सरल सहज ,अपने समय के छोटे -छोटे सच को कहने की कोशिश करती हैं।कोई चमकदार वाक्य नहीं हैं ।बहुत अच्छी कविताएँ हैं।
कार्यकम की अध्यक्षता इलाहाबाद से आए वरिष्ठ कवि हरीश चंद्र पांडे ने की। उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा इस किताब के शीर्षक ने मुझे बहुत प्रभावित किया । सीमा की कविता में सपने शब्द का प्रयोग बार बार आता है । सपने के बरक्स उन्होंने यथार्थ को रखा है। पितृसत्ता ने इतनी वर्जनाएं खड़ी कर दी हैं कि स्त्रियों के लिए जीवन में संघर्ष ही संघर्ष हैं। सपने में खिड़की से बाहर का संसार है, जब कि यथार्थ कहता है कि तुम्हारा संसार खिड़की के भीतर का संसार है।
कवि के लिए सपने शरण स्थली है या शिविर हैं क्या? जो वे बार बार सपने देखती हैं, जिन सपनों की कोई सीमा नहीं है। सपने आपकी दुनिया हैं, जिनमें कोई लक्ष्मण रेखा नहीं है। सपने आपको उम्मीद देते हैं। इनकी कविता में चिड़िया भी बार बार आती है। चिड़िया के पास जो पंख है, जो आकाश है, वो हमारे पास नहीं हैं। अपने नियत समय में एक चिड़िया आकर बैठ जाती है कविता का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि कवि का कायांतरण हो गया है चिड़िया में । सीमा की कविताओं में सपाटपन नहीं है।उनकी कविताओं का शिल्प बहुत सुंदर है।
एक अच्छी कविता जब सामने से गुज़रती है तो अनेक अच्छी कविताएँ सामने से गुज़रने लगती हैं। साथ रहने का अर्थ फूल जानते हैं इस तरह कविता कहने का सलीका बहुत कम लोगों के पास होता है। पहले संग्रह में इतनी परिपक्वता बहुत साधने से आती है लेकिन सीमा के संग्रह को देखकर मैं चकित रह गया। आरे आवा कविता का बिम्ब पूरे भारत का बिम्ब होगा। सीधे सीधे नहीं कहती वे कोई बात ,उनका कहन बहुत अनूठा है। कथ्य और शिल्प दोनों बहुत अच्छे से निभाती है ।पहला संग्रह होते हुए भी यह संग्रह बहुत पुष्ट है।
कार्यक्रम का संचालन जलेस लखनऊ की संयुक्त सचिव समीना ख़ान ने किया। लेखक और सामाजिक कार्यकर्ता हफ़ीज़ किदवई ने सभी लोगों और के.पी. सिंह मेमोरियल ट्रस्ट का आभार जताया। उन्होंने सीमा सिंह को बधाई देते हुए उनकी कविताओं की प्रशंसा की। कार्यक्रम में इप्टा से राकेश, वरिष्ठ संपादक सुभाष राय, जसम से कौशल किशोर, प्रलेस से इरा श्रीवास्तव, चंद्रेश्वर, नवीन जोशी, सीपी राय, प्रतुल जोशी समेत अनेक साहित्य प्रेमी शामिल रहे। कार्यक्रम के दूसरे सत्र में कविता पाठ हुआ। हरीश चंद्र पांडे और आरती ने कविता पाठ किया।