जल निगम कर्मियों/पेंनशनरों को 6 महीने से न वेतन और न ही मिली पेंशन
वेतन, पेंशन न मिलने से आर्थिक तंगी व विभागीय समस्याओं से जूझ रहे कर्मी
लखनऊ। लखनऊ जल निगम पेंशनरों/कर्मियों की प्रतिनिधि संस्था उत्तर प्रदेश जल निगम संघर्ष समिति ने आर्थिक संकट के चलते प्रेसवार्ता की। प्रेसवार्ता में (पेयजल एवं स्वच्छता के लिए वर्ष 1894-95 के बाद गठित संस्था जो विभिन्न नामों से परिवर्तित होते हुए 9 सितम्बर 2021 से जल निगम (नगरीय) एवं जल निगम (ग्रामीण) में परिवर्तित हो गई है के क्रिया कलापों, वित्तीय स्थिति, एवं प्रशासनिक व संस्थागत ढांचे की स्थिति के साथ जल निगम की अधोगति, उसके लिए उत्तरदायी तत्वों पर एक विस्तृत श्वेत पत्र जारी किया। कर्मियों ने बताया कि जल निगम विभाजन को त्रासदपूर्ण विभीषिका के रूप में मनाने की तैयारी पूर्ण कर ली है।
पत्रकार वार्ता में संयोजक वाईएन उपाध्याय ने कहा वर्ष 1894-95 से 1975 तक जल निगम शासकीय विभाग के रूप में स्थापित था। जिसे विश्व बैंक से वर्ष 1975 में मात्र 40 करोड़ रूपए कर्जा लेने के लिए तत्कालीन शासकीय विभाग स्वायत्त शासन, अभियन्त्रण विभाग को जल निगम में परिवर्तित कर दिया। वर्ष 1894-95 से लेकर 1975 तक 22 प्रतिशत सेन्टेज के रूप में धनराशि होती थी और कर्मियों का वेतन/पेंशन राजकीय कोषागार से भुगतान होता था।
जल निगम बनने पर वेतन/पेशन का भार सीधे जल निगम पर आ गया, जिसे 22 प्रतिशत सेन्टेज से ही भुगतान किया जाने लगा। मार्च 1997 से शासन ने सेन्टेज घटाकर 12.5 प्रतिशत कर दिया। जिससे वित्तीय स्थिति क्षीण होने लगी। इसी दौरान आवास विकास परिषद, विकास प्राधिकरणों, बड़े बडे क्लोनाइजरों ने अपनी कालोनियों में पेयजल, सीवरेज एवं ड्रेनेज जैसे कार्य स्वंय करना शुरू कर दिया। जिससे जल निगम के कार्यभार में कमी आयी। स्वजलधारा जैसी अनुभवहीन संस्था खड़ी कर दी, जो महज 4 वर्ष में ही समाप्त हो गयी। इस संस्था ने जल निगम के अस्तित्व पर चोट पहुंचाई। वर्ष 2000 में हैंडपंपों का रखरखाव व 2007-08 में एकल ग्राम पाइप पेयजल का रखरखाव ग्राम पंचायतों को सौंपें जाने से वित्तीय स्थिति जर्जर हो गई।
वर्ष 2017 से जल निगम के सुदृढ़ीकरण के नाम पर नित नये प्रयोग शुरू कर दिये गये। प्रारम्भ से लेकर वर्ष 2020 तक अध्यक्ष पद पर एक वरिष्ठ आईएएस० अधिकारी बड़ी कुशलता से ‘जल निगम का संचालित करते थे। जिसे नये पद सृजित कर बढ़ाकर 5 कर दिया गया और बाद में 9 सितम्बर 2021 को जल निगम एक्ट को संशोधित कर जल निगम को दो भागों में बांटकर बढ़ाकर 8 कर दिया गया। दोंनों निगमों में लगभग 50 नये कार्यालय खोलकर प्रशासनिक व्यय बेतहाशा बढ़ा दिया गया। भवनों के रेनोवेशन के नाम पर फिजूलखर्ची चरम पर पहुंचा दी गई।
रही सही कसर शासन ने वर्ष 2023 में सेन्टेज राशि पुनः 12.5% घटाकर 5-10% कर दी। जो नगरीय की बड़ी योजनाएं होने के कारण 5 प्रतिशत ही रह गई है। ग्रामीण में जल निगम (ग्रामीण) को 2 प्रतिशत सेन्टेज ही अनुमन्य किया गया है, जिससे जल निगम की कमर टूट गई है। एक तो आधा अधूरा वेतन व पेंशन मिल रही है, वह भी 6-6 महीने बाद। जल निगम में त्राहि-त्राहि मची है, लेकिन सुनने वाला कोई नहीं। जल निगम में सांतवां वेतनमान लागू ही नहीं किया गया। मंहगाई भत्ता/राहत 252 प्रतिशत की जगह 212 प्रतिशत नगरीय में अर्थात 40 प्रतिशत कम।
ग्रामीण में 246 लेकिन शासनादेश की तिथि के बजाय तुरन्त से। सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के बाद भी अभी सभी को षष्ठम वेतनमान का एरिअर नहीं दिया गया। सेवानैवृत्तिक देयों, पेंशन ग्रेच्युटी, अवकाश नकदीकरण के करोड़ों बकाया है। जिनका वर्षों से भुगतान नहीं किया गया। जीपीएफ में काटी गई धनराशि का निवेश न कर 292 करोड़ की राशि अन्यत्र व्यय कर दी गयी। 14 वर्षां से किसी कर्मी को बोनस नहीं दिया गया। कभी जल निगम में 26000 कर्मियों था बेड़ा था, जो आज घटकर मात्र 4912 कार्मिक तथा 14746 पेंशनर रह गये हैं। एक-एक कार्मिक चार-पांच पटलों का कार्य कर रहा है, लेकिन समय पर न वेतन न पेंशन मिल रही है।
प्रेस वार्ता को सम्बोधित करते हुए उपस्थित संगठनों के अध्यक्ष/महासचिवों ने कहा कि अविभाजित जल निगम में कर्मियों / पेंशनरों के साथ समान व्यवहार होता था तथा आर्थिक संतुलन बना रहता था। लेकिन विभाजन के बाद सभी कर्मियों व पेंशनरों में देयताओं का भुगतान व सेवा प्रकरणों में समानता नहीं रही। सभी का स्तर अलग-अलग। ऐसी स्थिति में जल निगम का विभाजन पूरी तरह असफल व जल निगम सम्पतियों व धन की बरबादी होने के साथ जनविरोधी साबित हुआ है। जो हमारे सामने एक त्रासदी एवं विभीषिका के रूप में प्रकट हुआ है।
प्रेसवार्ता में मुख्यमन्त्री जी की शिक्षकों को कैशलेस चिकित्सीय सुविधा उपलब्ध कराने की घोषणा का स्वागत करते हुए अपील की गयी है कि जल निगम कर्मी /पेंशनर भी उनके परिवार का हिस्सा है, फिर उन्हे इससे क्यों वंचित रखा जा रहा है। मुख्यमन्त्री जी से यह भी अपील की गई है कि जल निगम को सुद्ध करने का एक ही उपाय है कि इसका एकीकरण करते हुए इसे सेन्टेज रहित (शून्य सेन्टेज) घोषित कर दिया जाय व वेतन/पेंशन कोषागार से सम्ब्द्ध कर दी जाय । जल निगम कर्मी / पेंशनर 9 सितम्बर को विभाजन विभीषिका के रूप में काला दिवस मनाएंगे।