नवाब वाजिद अली शाह प्राणि उद्यान ने मनाया अंतरराष्ट्रीय गिद्ध जागरूकता दिवस
हुए व्याख्यान, लगी फोटो प्रदर्शनी, बच्चों ने दी जागरुकता पर आधारित प्रस्तुतियां
लखनऊ। नवाब वाजिद अली शाह प्राणि उद्यान, लखनऊ के सारस प्रेक्षागृह में अंतरराष्ट्रीय गिद्ध जागरूकता दिवस मनाया गया। समारोह के मुख्य अतिथि यूपी के प्रधान मुख्य वन संरक्षक और विभागाध्यक्ष सुनील चौधरी, विशिष्ट वाइल्ड लाइफ फोटोग्रॉफर प्रखर कृष्ण, जू निदेशक अदिति शर्मा, उप निदेशक व वरिष्ठ वजन्यजीव चिकित्सक डॉ उत्कर्ष शुक्ल, क्षेत्रीय वनाधिकारी, प्राणि उद्यान दिनेश बडोला, एसबीआई के अधिकारी व जू कर्मी व विभिन्न स्कूलों के छात्र-छात्रायें मौजूद रहे।
वनमंत्री डॉ अरूण कुमार सक्सेना ने वीडियो के जरिए संदेश दिया कि रामायण में भी जटायु गिद्ध का बहुमूल्य योगदान रहा है। गिद्ध हमारी ’’प्रकृति के सफाई कर्मचारी’’ हैं, क्योंकि उनका योगदान हमारी प्रकृति के लिए अति महत्वपूर्ण है, एवं उन्होंने आम-जनमानस से अपने-अपने घरों की छतोंप पर पक्षियों के पीने के लिए पानी एवं खाने की सामग्री रखने का भी अनुरोध किया।
लखनऊ प्राणि उद्यान के बायोलॉजिस्ट डॉ प्रशांत त्रिपाठी के ने कहा कि गिद्ध पारिस्थितिकी तंत्र के लिए बेहद जरूरी हैं। उन्होंने रामायण में दो गिद्ध भाई सम्पाती एवं जटायु के योगदान का भी वर्णन किया। कैसे जटायु ने माता सीता की रक्षा के लिए अपने प्राण त्याग दिये। उन्होंने कहा कि भारत में गिद्ध की कुल 9 प्रजातियां हैं। जिनमें हिमालयन गिद्ध एवं भारतीय ग्रिफॉन गिद्ध आदि सामान्यतः पाये जाते हैं। गिद्ध ‘most effective scavengers’, ‘slow breeders’ होते हैं, जिससे उनकी संख्या में वृद्धि की गति धीमी है।
डॉ प्रशांत ने बताया कि गिद्ध ज्यादातर वहां पाये जाते हैं जहां पर पशुओें की संख्या अधिक होती है। ताकि उन्हे पशुओं के मर जाने के बाद पर्याप्त मात्रा में उनके शवों से भोजन मिल सके। गिद्धों के होने से शवों से होने वाली बीमारियां जैसे- रेबीज़ एवं एंथ्रेक्स भी कम हो जाती हैं। गिद्धों के न होने से ये बीमारियां ज्यादा होंगी। समय रहते हमें गिद्ध संरक्षण पर महत्व देना चाहिए ताकि पारिस्थितिकीय तंत्र का संतुलन बना रहे। निदेशक अदिति शर्मा, ने अतिथियों का स्वागत सम्मान करते हुए कहा कि पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी तंत्र में गिद्ध एक बहुमूल्य स्थान रखते हैं।
विशिष्ट अतिथि प्रखर कृष्ण ने कहा कि विश्व में गिद्धों की 27 प्रजातियां पायी जाती हैं। इन्हें ’earth cleaning system’ भी कहा जाता है। गिद्ध समूह में रहना पसंद करते हैं। गिद्धों के न होने से पशुओं के शव से निकलने वाली नाइट्रोजन एवं कार्बन एमिशन अत्यधिक हो जायेगी। वातारण में सांस लेना मुश्किल हो जायेगा। गिद्धों की संख्या डाइक्लोफिनेक इत्यादि दवाइयों की वजह से कम हो गयी थी। जिसे बाद में भारत में बैन कर दिया गया। वर्ष 1990 के दशक में गिद्ध काफी अधिक मात्रा में पाये जाते थे। उन्होंने अनेक प्रजातियो के गिद्धों की फोटो साझा किये गये एवं विशेष जानकारी दी।
मुख्य अतिथि सुनील चौधरी ने बताया कि रामायण में जटायु जी का निकटतम सम्बन्धित गिद्ध वर्तमान में लाल सिर वाला गिद्ध है। गिद्ध की संख्या में कमी होने के कारण पैथोजेन्स के संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है, जिसे कम करने के लिए गिद्धों की संख्या में वृद्धि किया जाना जरूरी है। गिद्धों के संरक्षण के लिए गोरखपुर में जटायु संरक्षण एवं ब्रीडिंग सेन्टर है, जिसमें लाल सिर वाले गिद्ध का संरक्षण किया जा रहा है। जिससे उनकी संख्या में जल्द वृद्धि हो सके।