कालिंजर उत्तर प्रदेश के बांदा जिले में स्थित एक दुर्ग है। यह बुंदेलखंड क्षेत्र के विंध्य पर्वत पर बसा हुआ है। यह अजय दुर्ग विश्व धरोहर स्थल खजुराहो से तकरीबन 97.7 किलो मीटर की दूरी पर है। इसे भारत के सबसे विशाल और आपराजय दुर्गों में भी गिना जाता है। अजय दुर्ग में कई प्राचीन मंदिर और तालाब है जिसकी सुंदरता देखते ही बनती है। यहां हर साल कार्तिक पूर्णिमा के समय तीन दिन का शानदार मेला लगता है। जिसमें लाखों की भीड़ आती है। इस मेले में दूर-दूर से लोग घूमने और अपनी दुकानदारी करने के लिए आते हैं।
चंदेला शासन में मिली पहचान
कालिंजर की पहाड़ी पर बसे हुए किले अनेकों स्मारकों और मूर्तियों का खज़ाना हैं। जिससे की इतिहास के अलग-अलग पहलुओं के बारे में पता चलता है। बताया जाता है कि 16वीं शताब्दी के इतिहासकार के अनुसार कालिंजर कस्बे की स्थापना 7वीं शताब्दी में केदार राजा ने की थी। लेकिन इस किले को पहचान चंदेला शासनकाल में मिली। कहा जाता है कि इस किले का निर्माण चंदेला शासकों ने करवाया था। जिससे चंदेला को कालिंजराधिपति की उपाधि भी दी गई थी। जो कालिंजर किले से जुड़े हुए उनके महत्व को दर्शाती है।
मन को यहां मिलती है शांति
लोगों द्वारा बताया जाता है कि कालिंजर किले की बारीकियों को देखते हुए घूमा जाए तो इसमें एक दिन से भी ज़्यादा समय लग सकता है। यह किला अनेकों प्राचीन मंदिर इमारतों और तालाबों से तो मशहूर है ही लेकिन इसके साथ ही इस किले को भगवान शिव का निवास स्थान भी माना जाता है।
यहां हर साल कार्तिक पूर्णिमा को मेला लगता है। जिसमें कार्तिक महीने को नहाने वाली महिलाएं व लड़कियां या अन्य लोग जरूर से यहां आते हैं। तभी से इस किले को पर्वत और एक पवित्र जगह भी कहा जाता है। कहते हैं कि प्राकृतिक स्मारकों से गिरी यह जगह शांति और ध्यान के लिए एक आदर्श जगह है। अगर आप लोग यहां कभी नहीं आए हैं तो ज़रूर से आये।
किले के निर्माणकर्ता कई
इस किले का मुख्य आकर्षण नीलकंठ मंदिर है। कहते हैं कि इसे चंदेल शासक परमादित्य देव ने बनवाया था। मंदिर में 18 भुजा वाली विशालकाय मूर्ती के अलावा यहां एक शिवलिंग भी है। जो नीले पत्थर का बना हुआ है। साथ ही मंदिर के रास्ते के पत्थरों पर भगवान शिव का काल भैरव रूप, गणेश और हनुमान आदि के चित्र उकेरे गए हैं।
इस दुर्ग के निर्माण का कोई पूर्ण साक्ष्य नहीं है। मिली जानकारी के मुताबिक चदेल वंश के संस्थापक चंद्र वर्मा द्वारा इस किले का निर्माण कराया गया था। इतिहासकारों के मुताबिक इस दुर्ग का निर्माण केदार वर्मन द्वारा ईसा की दूसरी से सातवीं शताब्दी के मध्य कराया गया था।
कुछ इतिहासकारों का मत यह भी है कि इसके द्वारों का निर्माण मुगल शासक औरंगजेब ने भी कराया था। कलिंजर अजय दुर्ग में 7 प्रवेश द्वार थे। जिसमें आलमगीर दरवाजा, गणेश द्वार, चौबुरजी दरवाजा, बुद्धभद्र दरवाजा, हनुमान द्वार, लाल दरवाजा और बारा दरवाजा थे। लेकिन समय के साथ सब कुछ बदल गया। अब सिर्फ तीन दरवाजे ही बचे हुए हैं। कामता द्वार, रीवा द्वारा और पन्ना द्वारा। लेकिन पन्ना द्वार इस समय बंद है।
मनमोह लेती आकृतियां
बताया जाता है कि कलिंजर का अपराजय किला प्राचीन काल में जोजक भुक्ति सम्राट के अधीन था। जब चंदेल शासक आए तो इस पर मुगल शासक महमूद गजनवी, कुतुबुद्दीन ऐबक और हुमायूं ने अक्रमण कर इस कालिंजर किले को जीतना चाहा पर कामयाब नहीं हो सके। अंत में अकबर ने 1569 में इस किले को जीतकर बीरबल को उपहार स्वरूप दे दिया।
बीरबल के बाद यह किला बुंदेले राजा छत्रसाल के अधीन हो गया। इसके बाद पन्ना के हरदेव शाह का इस किले पर कब्जा हो गया। फिर 1812 में यह किला अंग्रेजों के अधीन हो गया। यह किला क्षतिग्रस्त हो गया। आज भी इस किले में बहुत सी सुंदर-सुंदर इमारतें हैं। कुछ इमारतें तो खंडहर में तब्दील हो गई हैं।
लेकिन आज भी जब लोग इस किले में घूमने आते हैं और दीवारों पर चित्रित आकृतियों पर नजर डालते हैं तो एक अलग ही पहचान नजर आती है। मन करता है कि इस किले की दीवारों बस देखते ही रहें।
रोज़गार के क्षेत्र में भी है महत्वपूर्ण
कालिंजर दुर्ग व्यवसायिक रूप से भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यहां से मध्य प्रदेश का बॉर्डर लगा हुआ है। पहाड़ी खेरा और बृहस्पति कुंड जैसे उत्तम कोर्ट में हीरा खदान पाए जाते हैं। जहां पर लोग करोड़ों-अरबों का व्यापार भी करते हैं। वहीं बृहस्पति कुंड भी बहुत ही सुंदर जगह है। जहां पर ऊंची पहाड़ी से झरना गिरता है। कहा जाता है कि यहां पर गुरु बृहस्पति आ कर रुके थे। जिससे इस जगह का नाम बृहस्पति कुंड पड़ गया। यहां आने से और नहाने से लोगों को बहुत सुकून मिलता है। यहां अधिक मात्रा में लोग घूमने के लिए आते हैं।
औषधियों का भंडार है अजय दुर्ग
कालिंजर दुर्ग में कई तरह की औषधियां मिलती हैं। यहां होने वाले सीताफल की पत्तियां और बीज औषधियों के काम आते हैं। इसके अलावा गुमाय, मदनमास्त और चांदी जैसी कई तरह की औषधि और वनस्पति है जिससे लोगों का रोजगार चलता है। लोग इस किले की खूबसूरती देखने के लिए तो आते ही हैं लेकिन यहां का औषधि वनस्पति भी बहुत ज़्यादा मशहूर है। खास तौर से सीताफल और अमरूद तो कलिंजर में बहुत ही प्रसिद्ध है। जब भी कोई घूमने आता है तो वह बिना इन फलों को लिए यहां से नहीं जाता।
आप भी कभी बुंदेलखंड ज़रूर आइए और कलिंजर, अजय दुर्ग और बृहस्पति कुंड जरूर से घूमिये। यहां से सीताफल और अमरूद लेकर जाइये और अपने साथियों को भी बोलिए कि वह भी घूमने आए और यहां की अद्भुत चीज़ों का आनंद उठायें।
इसलिए नजर गड़ाए हुए थे शासक
कालिंजर फोर्ट पर हुई रिसर्च कहती है, यह वो किला है जिस पर महमूद गजनवी, कुतुबुद्दीन ऐबक और हुमायूं से लेकर शेर शाह सूरी तक ने कब्जा करना चाहा, लेकिन सफल नहीं हुए. उन्होंने जान की बाजी तक लगा दी. इसे हासिल करने क लिए पृथ्वीराज चौहान से लेकर पेशवा बाजीराव तक ने कोई कोर कसर नहीं छोड़ी.
कहा जाता रहा है कि इसे जीतना रियासतों में अपने शौर्य का पताका लहराने जैसा था. यह घने जंगलों के बीच बनी पहाड़ी पर बना था. जहां तक शत्रुओं की सेना का पहुंचना लगभग नामुमकिन था. 5 मीटर मोटी दीवारों वाले इस दुर्ग की उंचाई 108 फुट थी. जिस पहाड़ी पर यह दुर्ग बना था उसकी चढ़ाई बहुत दुर्गम थी. इतना ही नहीं, उंचाई पर होने के कारण दुश्मनों के लिए तोप से हमला करके इसे ध्वस्त करना भी नामुमकिन था. इसकी गिनती अपने दौर के सबसे मजबूत किलों में की जाती थी.
इतना ही नहीं, बुंदेलखंड इलाके को पानी की कमी के लिए भी जाना जाता है, लेकिन यह जिस पहाड़ी पर बना था वहां से हमेशा पानी रिसता रहता था. यह भी अपने दौर में कौतुहल का एक विषय था. कहा जाता है कि बुंदेलखंड में सालों तक सूखा पड़ने के बाद भी कालिंजर दुर्ग की पहाड़ी से पानी रिसना बंद नहीं हुआ. इसकी इन्हीं खूबियों के कारण कई शासकों ने इस पर कब्जा जमाने का सपना देखा.

कितनों ने शासन किया?
जिस समय दिल्ली की सल्तनत पर मुगलों का राज था जब चंदेल शासन में शेर शाह सूरी ने इस किले को फतह करने की कोशिश की थी पर वो जंग में मारा गया. शेर शाह सूरी वो शासक था जिसने हुमायूं को हराकर सूरी साम्राज्य की स्थापना की थी. लेकिन 1545 में कालिंजर को हासिल करने में उसकी मौत हो गई और यह हुमायूं के लिए सुनहरा मौका साबित हुआ. नतीजा, हुमायूं ने फिर दिल्ली को जीत किया और अगले 300 सालों तक मुगलों ने राज किया.
हुमायूं ने किले को हासिल करने की कोशिश की लेकिन नाकामयाब रहे. हालांकि 1569 में अकबर ने इसे जीत कर अपने नवरत्नों में शामिल बीरबल को तोहफे में दे दिया. इस कब्जे के बाद भी शासकों में कांलिजर को पाने चाहत कम नहीं हुई. एक दौर ऐसा भी आया जब राजा छत्रसाल ने पेशवा बाजीराव की मदद से बुंदेलखंड से मुग़लों को बेदखल करके दम लिया. इस तरह अंगेजों के आने तक यह राजा छत्रसाल की रिसासत का हिस्सा रहा.

क्या कहता है इतिहास?
मशहूर चीनी शोधार्थी ह्वेन त्सांग ने 7वीं शताब्दी में लिखे अपने दुर्लभ संस्मरण में कालिंजर दुर्ग के बारे में कई जानकारियां दर्ज की हैं. यह दुर्ग कितना पुराना है इसके साक्ष्य गुप्त काल से मिलते हैं. पुरातत्व विशेषज्ञों को यहां के ऐसे शिलालेख मिले हैं जो बताते हैं कि यह गुप्त काल में भी मौजूद रहा है. इसके बाद यह किला कई राजाओं की सल्तनत का हिस्सा रहा.
दुर्ग में भगवान नीलकंठ महादेव का मंदिर है
9वीं से 13वीं शताब्दी के बीच इस चंदेल शासकों ने शासन किया. 400 सालों तक राज करने वाले चंदेलों ने इसे अपनी राजधानी बनाया. इसके बाद ही इस पर आक्रमण करने का सिलसिला शुरू हुआ. इस दुर्ग में गुप्त स्थापत्य शैली, चंदेल शैली, प्रतिहार शैली, पंचायतन नागर शैली के नमूने दिखते हैं. इस दुर्ग में प्रवेश के 7 रास्ते हैं. इसमें कई मंदिर हैं. यह किला हिन्दू भगवान शिव का निवास स्थान भी कहा जाता है. यहां नीलकंठ महादेव मंदिर है.