पिछले कुछ सालों में भारत में कैथोलिक पादरियों की आत्महत्याओं के मामले तेजी से बढ़े हैं. आत्महत्या के पीछे की वजह अत्यधिक कार्यभार, सामाजिक दबाव बताया जा रहा है. पिछले 5 सालों में 13 पादरियों ने आत्महत्या की है.
देशभर में हजारों चर्च हैं. पादरियों की संख्या भी अच्छी खासी है. इनका काम चर्च की देखभाल के साथ ही धार्मिक अनुष्ठानों का संचालन करना होता है. इसके साथ ही शिक्षा और सामाजिक सेवा में भी वे एक्टिव नजर आते हैं. हालांकि पिछले कुछ दिनों से कई चर्च के पादरियों को लेकर एक चिंता की खबर सामने आई है. देशभर से कई ऐसे मामले सामने आए हैं जहां पादरियों ने आत्महत्या कर ली है. लगातार हो रही इस तरह की घटनाओं ने सभी को चिंता में डाल दिया है.
भारतीय पादरियों की मौत की वजह निराशा मानी जा रही है. चर्च और समाज की रीति-रिवाजों और पल्ली कर्तव्यों को आत्महत्या के पीछे की असली वजह माना जा रहा है.
तपस्या बनी पादरियों की जान की दुश्मन?
हर साल 4 अगस्त को, चर्च पल्ली पुरोहितों के संरक्षक संत, जॉन वियान्ने का पर्व मनाता है. क्यूरे डी’आर्स के नाम से प्रसिद्ध, 19वीं सदी के यह फ्रांसीसी पादरी अपनी पवित्रता और अटूट भक्ति के लिए जानें जाते हैं. उन्होंने कई घंटे कन्वेंशन में बिताए हैं. वे इस बात के लिए भी जाने जाते हैं कि वे कम सोते थे, कम खाते थे. उनकी तस्वीर पूरे भारत में पवित्र स्थानों पर लगी हुई है, जो चर्च के पादरियों के जीवन के लिए आदर्श हैं.
हालांकि पादरियों के आदर्श गुरु के प्रति श्रद्धा अब खतरनाक होती जा रही है. ऐसा इसलिए क्योंकि इसमें एक विशेष तरह की तपस्या करनी होती है. इसके लिए पूरी रूपरेखा तैयार की जाती है. जो काफी कठिन मानी जाती है. यही कारण है कि लगभग हर पादरी इस तपस्या से बचते हैं और करने वाले इसमें दबाव महसूस करते हैं. इस तपस्या का साफ संदेश है कि मौन पीड़ा, अंतहीन त्याग और व्यक्तिगत आवश्यकताओं का त्याग करना होगा.
हर 6 महीने में कर रहा एक पादरी आत्महत्या
चर्च के पादरियों के आत्महत्या के आंकड़ों ने हर किसी को चौंका दिया है. पिछले 5 सालों की बात की जाए तो हर 6 महीने के भीतर एक कैथोलिक पादरी ने आत्महत्या की है. अब तक 13 से ज्यादा पादरी आत्महत्या कर चुके हैं. इसके मामले अब तेजी से बढ़ते जा रहे हैं. मरने वाले पादरियों में ज्यादातर 30 से 50 साल की उम्र के पादरी होते हैं. ये आत्महत्या के से पहले अपनी मानसिक पीड़ा और धर्मप्रांत को लेकर चल रहे संघर्षों के बारे में भी बात करते हैं. वे एक ऐसी व्यवस्था के शिकार हैं जो पीड़ा से निपटने के बजाय उसे आध्यात्मिक बना देती है.
पादरियों की मौत बनी चिंता का सबब
पादरियों को आज के समय में कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. कम संसाधनों में अक्सर अकेले रहने के कारण तनाव का सामना करना पड़ रहा है. ऐसे रहते हुए ही उन्हें समाज के लिए भी काम करना पड़ता है. ऐसा करने के बाद भी जिस तरीके का सम्मान मिलना चाहिए वो उन्हें नहीं मिलता है. इसके अलावा आज उन्हें डिजिटली उनकी हर गतिविधि पर नजर रखी जाती है.
पादरियों से अब भी यही अपेक्षा की जाती है कि वे सदाचार के आदर्श बनें, हमेशा उपलब्ध रहें और भावनात्मक रूप से स्थिर रहें. जब वे चुनौतियों का सामना करते हैं, तो उन्हें और अधिक प्रार्थना करने, अधिक समय तक उपवास करने और और भी अधिक विश्वास करने के लिए कहा जाता है.
पादरियों के लिए मानसिक स्वास्थ्य संसाधन सीमित हैं या बिल्कुल नहीं हैं. बिशप अक्सर ऐसा माहौल बनाते हैं जहां कमजोरियों को हतोत्साहित किया जाता है और पूर्णतावाद की प्रशंसा की जाती है. लगातार हो रही इन मौतों ने हर किसी को चिंता में डाल दिया है.