वन हमारी पारिस्थितिकी का एक महत्वपूर्ण घटक हैं,तथा इसमें मैंग्रोव (mangroves)वनों की भी एक महत्वपूर्ण भूमिका है। मैंग्रोव को अत्यधिक लवणीयता सहन करने वाले पेड़ों और झाड़ियों के समूह के रूप में परिभाषित किया जाता है, जो कि उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय समुद्र तटों के जलमग्न क्षेत्रों में उगते हैं। वे उन जगहों पर उगते हैं जहां मीठा या स्वच्छ जल समुद्री जल के साथ मिल जाता है,और गाद जमे हुए कीचड़ से बनी होती है।
भारत में, मैंग्रोव वनों की उपस्थिति मुख्य रूप से 9 राज्यों और 3 केंद्र शासित प्रदेशों में सीमित है। भारत में ये वन लगभग 4,97म. वर्ग किलोमीटर भूमि में फैले हुए हैं, तथा पश्चिम बंगाल और गुजरात भारत के दो ऐसे राज्य हैं, जहां मैंग्रोव वनों का सबसे अधिक हिस्सा पाया जाता है।
मैंग्रोव वृक्ष ‘मैंग्रोव’ शब्द का अर्थ होता है – दलदल में उगे पेड़/झाड़ियां। मैंग्रोव ऐसे छोटे वृक्ष/झाड़ी होते हैं जो खारे पानी अथवा अर्ध-खारे पानी में पाए जाते हैं तथा ये समुद्री तटों को स्थिरता प्रदान करते हैं। अर्थात मैंग्रोव नमक-सहिष्णु पेड़ हैं, इन्हें हेलोफाइट्स भी कहते हैं। इनकी जड़ें अक्सर पानी के नीचे नमकीन तलछट में होती है। ये फूल वाले पेड़ होते है, जो राइजोफोरेसी, लिथ्रेसी, एकेंथेसी, कॉम्ब्रेटेसी और अरेकेसी फेमिली (परिवार) से संबंधित हैं। मैंग्रोव पेड़ों की लगभग 80 प्रजातियां है, जो कम ऑक्सीजन वाली मिट्टी में उगते हैं।
पश्चिम बंगाल में मैंग्रोव वन 2,112 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को आवरित करते हैं, जबकि गुजरात में वे 1,177 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को आवरित करते हैं।भारत में सबसे आश्चर्यजनक मैंग्रोव वन सुंदरवन वन, गोदावरी-कृष्णा मैंग्रोव, भितरकनिका मैंग्रोव्स, कच्छ मैंग्रोव की खाड़ी (Gulf of Kutch Mangroves),पिचवरम मैंग्रोव, ठाणे क्रीक मैंग्रोव्स, बारातंग द्वीप मैंग्रोव्स, चोराओ द्वीप मैंग्रोव हैं। सुंदरबन 10,000 वर्ग किलोमीटर भूमि में फैला हुआ है, और इसका लगभग 40% हिस्सा भारत में है। यह अपनी उत्कृष्ट जैव विविधता के लिए जाना जाता है, हालांकि 2007 और 2021 के बीच सुंदरबन का बहुत घना मैंग्रोव कवर अब कम हो गया है। 2020-2022 के दौरान पश्चिम बंगाल वन विभाग द्वारा मैंग्रोव वृक्षारोपण भी किया गया था, किंतु यह प्रयास कुछ महत्वपूर्ण परिवर्तन नहीं ला पाया।
गोदावरी-कृष्णा मैंग्रोव,आंध्र प्रदेश के पूर्व-गोदावरी जिले में गोदावरी नदी के डेल्टा में स्थित है तथा यह भारत में सबसे आकर्षक मैंग्रोव वनों में से एक है जो आंध्र प्रदेश में 404 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। भितरकनिका मैंग्रोव ओडिशा में ब्राह्मणी-बैतरनी नदियों के डेल्टा क्षेत्र में स्थित है, जो भितरकनिका वन्यजीव अभयारण्य और भितरकनिका राष्ट्रीय उद्यान को भी आवरित करता है। भितरकनिका मैंग्रोव्स 251 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है, जहां मगरमच्छों की एक बड़ी आबादी देखने को मिलती है।
कच्छ मैंग्रोव की खाड़ी में गुजरात राज्य के 70% से अधिक मैंग्रोव शामिल हैं, जिन्हें ग्रे मैंग्रोव के रूप में जाना जाता है।एविसेनिया मरीना (Avicennia Marina) गुजरात में सबसे प्रमुख मैंग्रोव प्रजाति है। पिचवरम मैंग्रोव वन तमिलनाडु के कुड्डालोर जिले में स्थित है, जो अलग-अलग आकार के कई द्वीपों के साथ 11 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। यहा वनस्पतियों की एक प्रचुर मात्रा उपलब्ध है, जो कई देशी और प्रवासी पक्षियों को आकर्षित करती है।ठाणे क्रीक मैंग्रोव महाराष्ट्र में कोंकण क्षेत्र के छह जिलों ठाणे, मुंबई उपनगर, मुंबई शहर, रायगढ़, सिंधुदुर्ग और रत्नागिरी में मौजूद है। 90 वर्ग किलोमीटर के कवरेज के साथ, दूसरा सबसे बड़ा मैंग्रोव ठाणे में हैं और 121 वर्ग किलोमीटर के कवरेज के साथ,सबसे बड़ा मैंग्रोव रायगढ़ में है।बारातांग द्वीप मैंग्रोव अंडमान और निकोबार द्वीप समूह की राजधानी पोर्ट ब्लेयर से लगभग 100 किलोमीटर दूर स्थित हैं। भारत में सबसे खूबसूरत मैंग्रोव वनों में से एक, चोराओ द्वीप मैंग्रोव राज्य की प्रमुख नदियों जुआरी, मंडोवी, चापोरा, गलजीबाग, साल, तलपोना और तिराकोलके किनारे फैले हुए हैं।

मैंग्रोव के पौधों को आम तौर पर दो समूहों में विभाजित किया जाता है, पहली वास्तविक मैंग्रोव प्रजातियां और दूसरी सम्बंधित मैंग्रोव प्रजातियां।मैंग्रोव प्रजातियाँ केवल मैंग्रोव वातावरण में ही विकसित हो सकती हैं और स्थलीय पादप समुदाय में विकसित नहीं हो पाती हैं। मैंग्रोव प्रजातियाँ लवणीय, जलभराव और अवायवीय जैसी परिस्थितियों का सामना करने के लिए खुद को रूपात्मक, शारीरिक और प्रजनन रूप से तैयार कर लेती हैं। 27 जेनेरा (Genera) में कुल 69 प्रजातियों (जो 20 परिवारों से संबंधित हैं) को वास्तविक मैंग्रोव प्रजाति माना गया है। मैंग्रोव पर्यावरण अत्यधिक गतिशील और कठोर होता है, इसलिए ऐसी पर्यावरणीय परिस्थितियों का सामना करने के लिए मैंग्रोव प्रजातियों में कुछ विशिष्ट विशेषताएं होती हैं, जैसे श्वसनीय जड़ें, सिल्ट (Silt) जड़ें और विविपैरी (Vivipary)। विविपैरी मैंग्रोव प्रजातियों में प्रजनन का वह तरीका है, जिसमें बीज अंकुरित होकर अंकुर में विकसित होते हैं, हालांकि तब भी मूल पेड़ से जुड़े होते हैं।
हमारी पारिस्थितिकी के सुचारू रूप से संचालन में मैंग्रोव क्षेत्र की एक महत्वपूर्ण भूमिका है।यह मानव जीवन को प्रभावित करने वाली आपदाओं जैसे चक्रवाती तूफान, सुनामी आदि को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह मिट्टी के कटाव को रोकता है तथा तटीय जल की मत्स्य उत्पादकता को बढ़ाता है।यह व्यावसायिक रूप से महत्वपूर्ण मछली, झींगा और केकड़ों के लिए एक नर्सरी ग्राउंड के रूप में कार्य करता है।मैंग्रोव वन जैव विविधता में भी समृद्ध हैं और वन्यजीवों के आवास के रूप में कार्य करते हैं। यह पक्षियों, मछलियों, सरीसृपों और स्तनधारियों की विभिन्न प्रजाति को भोजन और आवास उपलब्ध कराते हैं। ओस्प्रे (Osprey) और बाल्ड ईगल (Bald eagles) इन स्थानों से मछली और कभी-कभी छोटे जानवरों का शिकार करते हैं। इसी प्रकार से स्पूनबिल्स (Spoonbills) और आइबिस (Ibis) जैसी प्रजातियां यहां केकड़ों, झींगा और अन्य जलमग्न जीवों का शिकार करती हैं। बड़ी वयस्क मछलियाँ भी छोटी मछलियों और अकशेरुकी जीवों के रूप में मैंग्रोव प्रणालियों से अपना भोजन प्राप्त करती हैं।

मैंग्रोव की विशेषताएं
मैंग्रोव वृक्ष खारे पानी और कम ऑक्सीजन की स्थिति में भी जीवित रह सकते हैं। मैंग्रोव जड़ प्रणाली वातावरण से ऑक्सीजन को अवशोषित करती है, क्योंकि मैंग्रोव वातावरण की मिट्टी में ऑक्सीजन सीमित या शून्य होती है। इनकी जड़ें आम पौधों से अलग होती हैं, जिन्हें ब्रीदिंग रूटस अथवा न्यूमेटोफोर्स कहा जाता है। इनकी जड़ों में कई छिद्र होते हैं, जिनके द्वारा ऑक्सीजन भूमिगत ऊतकों में प्रवेश करती है। मैंग्रोव के पेड़ गर्म, कीचड़युक्त, नमकीन आदि उन परिस्थितियों में ही फलते-फूलते हैं, जिसमें दूसरे पौधों जीवित नहीं रह पाते। मैंग्रोव पेड़ों की एक अन्य विशेषता उनकी श्वसन जड़ें भी हैं, जो सामान्य जड़ों के विपरीत ज़मीन से ऊपर निकल आती हैं। जिनमें छोटे-छोटे छिद्र होते हैं। इनके माध्यम से ये ऑक्सीजन ग्रहण करके नीचे की जड़ों को पहुंचाती हैं। मैंग्रोव पौधे की पत्तियों पर एक मोम का लेप होता है जो जल को अपने अंदर अवशोषित रखता है और जल के वाष्पीकरण को कम करता है। इनके बीज मूल पौधे से जुड़े रहते हुए ही अंकुरित होकर पानी में गिर जाते हैं और किसी अन्य स्थान पर पहुंचकर ठोस ज़मीन में अपनी जड़ें जमा लेते हैं।
मैंग्रोव पौधों में सूर्य की तीव्र किरणों तथा पराबैंगनी-बी किरणों से बचाव की क्षमता होती है। दुनिया में मैंग्रोव वन पृथ्वी पर मैंग्रोव वन का क्षेत्रफल 1,50,000 वर्ग किलोमीटर है, जिसमें एशिया में मैंग्रोव की संख्या सबसे ज्यादा है। दक्षिण एशिया के मैंग्रोव वन की दुनिया के मैंग्रोव वन में हिस्सेदारी 6.8 प्रतिशत है और दक्षिण एशिया के मैंग्रोव वन में भारत का योगदान 45.8 प्रतिशत है।
दुनिया में चार मुख्य प्रकार के मैंग्रोव वृक्ष पाए जाते हैं –
1. लाल मैंग्रोव (बहुत अधिक खारे पानी को सहने की क्षमता रखते हैं),
2. काले मैंग्रोव (खारे पानी को सहने की क्षमता कम होती है),
3. सफेद मैंग्रोव (चिकनी सफेद छाल वाले) और
4. बटनवुड मैंग्रोव (झाड़ी आकार वाले)।