लखनऊ लगातार मेडिकल हब के रूप में विकसित होता जा रहा है, जहां केजीएमयू, पीजीआई, लोहिया संस्थान जैसे बड़े सरकारी मेडिकल संस्थान है, तो वहीं गई नामी-गिरामी कार्पोरेट हॉस्पिटल भी चल रहे हैं। हालांकि, इस सबके बीच शहर में अवैध कमाई के लालच में नकली दवाओं का कारोबार भी तेजी से फल-फूल रहा है। कई गिरोह के माध्यम से करोड़ों की नकली दवाएं लखनऊ के थोक व खुदरा विक्रेताओं तक पहुंच रही हैं। एसटीएफ और एफएसडीए की छापेमारियों में बैन दवाओं व अधोमानक उत्पादों का खुलासा हो रहा है। पर कमजोर निगरानी तंत्र इसे रोकने में बाधक सिद्ध हो रहा। ऐसे में, सरकार को इसकी रोकथाम के लिए सख्त कदम उठाने होंगे वरना लखनऊ का स्वास्थ्य तंत्र पूरी तरह चरमरा सकता है।
दवा व्यापार मंडल लखनऊ के अध्यक्ष सुरेश कुमार बताते हैं कि राजधानी लखनऊ में 5 हजार से अधिक मेडिकल स्टोर संचालित हो रहे हैं। इनमें होलसेल के 1200 से अधिक और रिटेल के करीब 4 हजार मेडिकल स्टोर हैं। वहीं, राजधानी में दवा का सालाना कारोबार 1200 करोड़ रुपए से अधिक का है। राजधानी में नकली और डुप्लीकेट दवाओं की खपत लगातार बढ़ती जा रही है। जिसके कारण इनका मार्केट टर्नओवर करीब 15-20 पर्सेंट का हो गया है, जोकि लगातार बढ़ता जा रहा है और दवा व्यापारियों लिए एक बड़ी चिंता का विषय भी है। नकली दवाएं लगातार पकड़ी तो जा रही हैं, पर इनपर कोई रोक नहीं लग पा रही है। इसके अलावा, जेनरिक दवाओं का व्यापार 25-30 फीसद तक हो चला है, जोकि धीरे-धीरे बढ़ता चला जा रहा हैं। इसकी वजह से दवा व्यापार पर करीब 80 फीसद तक का असर देखने को मिल रहा है।
दवा समिति के पदाधिकारियों के मुताबिक, पहले नकली व डुप्लीकेट दवाएं हिमाचल, उत्तराखंड, पंजाब व हरियाणा आदि प्रदेशों से आती थीं, पर अब ये पुड्डुचेरी, चेन्नै व मेरठ आदि जगहों से बनकर आ रही हैं। चूंकि लखनऊ कोई प्रोडक्शन क्षेत्र नहीं है इसलिए यहां पर ऐसी दवाओं को बड़ी संख्या में खपाया जाता है। यहां से अन्य जिलों, राज्यों और पड़ोसी देशों तक में सप्लाई की जा रही हैं, जोकि बड़ी चिंता का विषय है। इससे असल दवा कारोबार पर असर पड़ रहा है और साख भी खराब हो रही है।