हिंदू धर्म में गंगा और यमुना दोनों नदियों को पवित्र माना गया है. गंगाजल जहां पूजा, स्नान और घर में रखने के लिए शुभ समझा जाता है, वहीं यमुनाजल को घर में रखने की सख्त मनाही है. आखिर क्यों? क्या केवल मान्यता है या इसके पीछे कोई पौराणिक आधार भी है? चलिए जानते हैं इसका धार्मिक रहस्य.
सनातन में गंगा के साथ ही हमेशा यमुना का नाम भी लिया जाता है. यमुना के जल को भी श्रद्धा और आदर दिया जाता है, लेकिन घर में इसे रखने से संबंधित मान्यताएं नकारात्मक प्रभाव की ओर इशारा करती हैं. लोगों की मान्यताओं के अनुसार इसे केवल पूजा-पाठ या स्नान तक सीमित रखना ही उचित है. लेकिन ऐसा क्यों?
यमुना नदी को हिंदू धर्म में मां का दर्जा प्राप्त है. उसे पापनाशिनी, काल संहारिणी और मोक्षदायिनी माना जाता है, फिर भी एक ऐसी मान्यता वर्षों से चली आ रही है कि यमुना का जल घर में नहीं रखना चाहिए. इसके पीछे केवल लोक मान्यता ही नहीं, बल्कि यमराज, तर्पण और मृत्यु से जुड़ी शक्तियों का संबंध है. इस रहस्य का संबंध स्वयं भगवान श्रीकृष्ण से भी जुड़ा है.
यमुना जी कौन हैं?
शास्त्रों में वर्णित है कि यमुना देवी सूर्य देव की पुत्री और यमराज की बहन हैं. उन्हें कालिंदी भी कहा जाता है. कार्तिक शुक्ल द्वितीया को भाई दूज पर यमराज अपनी बहन यमुनाजी के घर जाते हैं और आशीर्वाद देते हैं कि जो भाई और बहन इस दिन यमुनाजल से स्नान करेंगे, उस बहन के भाई की अकाल मृत्यु नहीं होगी.
यमुना का यमराज यानी मृत्यु के देवता से संबंध
यमुनाजी का संबंध यमराज यानी मृत्यु के देवता से है, इसलिए यमुनाजल को घर में रखने से मना किया जाता है. इससे घर में नकारात्मक ऊर्जा और यम का प्रभाव बढ़ सकता है, यही कारण है कि गंगाजल जहां जीवनदायिनी माना गया है, वहीं यमुनाजल को केवल व्रत, स्नान या तीर्थ में प्रयोग करने तक सीमित रखा गया है.
गरुड़ पुराण का संकेत
गरुड़ पुराण और पद्म पुराण जैसे शास्त्रों में भी उल्लेख मिलता है कि यमुना के जल का उपयोग केवल तीर्थ स्नान या प्रायश्चित्त कर्मों के लिए करना चाहिए, लेकिन इसे घर में स्थायी रूप से नहीं रखना चाहिए, क्योंकि इससे घर में मृत्यु, रोग या कलह के योग बन सकते हैं.
श्रीकृष्ण और यमुना जी का विशेष नाता
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जब भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ, तब वासुदेव जी उन्हें मथुरा से गोकुल ले जा रहे थे, तब यमुना जी ने उन्हें रास्ता दिया था. किंवदंती है कि यमुना जी ने बालकृष्ण के चरण स्पर्श करने के लिए अपनी जलधारा ऊपर उठाई थी, और तभी कृष्ण के पावन स्पर्श से यमुना और भी पवित्र हुईं. भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं का प्रमुख केंद्र वृंदावन और यमुना तट ही रहा है. गोपियों संग रास, कालिया नाग का मर्दन, और माखन चोरी, ये सब यमुना किनारे ही हुआ. यमुना को भगवान कृष्ण की पटरानी माना जाता है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान कृष्ण से यमुना मैय्या को यह वरदान प्राप्त था कि वह हमेशा उनके चरणों में ही रहेंगी.
वास्तु व शुद्धता की दृष्टि से वर्जित
वास्तु शास्त्र के अनुसार, यमुना जल कालेपन व अस्थिरता का प्रतीक है. घर में इसका संग्रह करने से दरिद्रता या मानसिक तनाव बढ़ सकता है. जबकि गंगाजल को सभी दोषों को हरने वाला बताया गया है.

